किसान हित के कृषि कानून को वापसी कराने वाले कुछ लोग अभी हाल में ही वाराणसी पहुचे थे और वहां एक दिन के आंदोलन के माध्यम से जनता को फिर से गुमराह करने का कार्य किया है।

जिस सर्व सेवा संघ की जमीन पर निचली अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक ने इनका कब्जा अवैध बताया था, उसी जमीन के विवाद में मेधा पाटकर और योगेंद्र यादव ने गांधी विरासत पर हुए कब्जे को देश के ढांचे पर हमला बताया है। शास्त्री घाट पर दिनांक 10-08-2023 को इसे वापस पाने के लिए एक विशाल जनसभा की गई थी, जिसमे कुछ अन्य नेताओं के साथ मेधा पाटेकर और योगेंद्र यादव यहां पहुंचे थे। वाराणसी में सर्व सेवा संघ की जमीन विवाद जैसे अनावश्यक मुद्दों को लेकर ये लोग आंदोलनों के माध्यम से जनता को गुमराह कर रहे है।


वर्ष 2020 में काशी रेलवे स्टेशन का डेवलपमेंट होना था, जिसके लिए रेलवे को इस भूमि की आवश्यकता थी। सर्व सेवा संघ और उत्तर रेलवे के बीच जमीन के मालिकाना हक पर चल रहे विवाद में जिलाधिकारी एस. राजलिंगम ने सुनवाई के बाद रेलवे के हक में फैसला दिया था। उन्होंने सर्व सेवा संघ का निर्माण अवैध करार देते हुए जमीन को उत्तर रेलवे की संपत्ति माना था।
सर्व सेवा संघ ने वाराणसी जिले में 12.90 एकड़ भूखंड पर बने ढांचों को गिराने के लिए उत्तर रेलवे द्वारा जारी नोटिस को चुनौती देते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट का रुख किया था, जिसे हाईकोर्ट ने खारिज करते हुए अस्तरीय बता दिया था। इसके बाद सर्व सेवा संघ भवन मामले की सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई थी और कोर्ट ने दस्तावेज को अपर्याप्त मानते हुए सर्व सेवा संघ की याचिका खारिज कर दी थी।
अब रेलवे प्रशासन ने वाराणसी के राजघाट स्थित सर्व सेवा संघ का भवन व परिसर को खाली करा लिया है। इस जमीन का इस्तेमाल काशी रेलवे स्टेशन के डेवलपमेंट में होगा। लेकिन निचली अदालत से लेकर सुप्रीमकोर्ट तक जिस भूमि पर सर्व सेवा संघ भवन का कब्जा अवैध बताया गया है, वहां भी ये लोग आन्दोलन करने पहुच गए है और जनता को गुमराह कर रहे है। सवाल उठता है कि एक आंदोलन के बाद दूसरे आंदोलन की तैयारी शुरू करने वाले को आंदोलनजीवी नहीं कहा जाये तो और क्या कहा जाये?
आंदोलनजीवी के रूप में पहचान रखने वाले योगेंद्र यादव को अब तलाश थी कि वह किस तरह फिर से सुर्खियों में रहें, इसीलिए वाराणसी गए थे। योगेंद्र यादव काफी लंबे समय से राजनीति में पांव जमाना चाहते हैं। इसके लिए उन्होंने पहले आम आदमी पार्टी से नाता जोड़ा था, लेकिन वहां से कुछ समय बाद उन्हें निकाल दिया गया था। बाद में उन्होंने अपनी पार्टी स्वराज इंडिया बना कर दिल्ली नगर निगम चुनाव में अपने उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन जनता ने इस पार्टी को बुरी तरह खारिज कर दिया था।
आंदोलनजीवी के रूप में पहचान रखने वाली मेधा पाटेकर और उनके “अर्बन नक्सल” दोस्तों द्वारा गुजरात को बेहद फायदा पहुंचाने वाली नर्मदा परियोजना के विरोध की वजह से इसमें अनावश्यक देरी हुई थी। अब, मेधा और उनके साथी आलोचक गलत साबित हो चुके हैं। इस परियोजना का उद्देश्य सौराष्ट्र, कच्छ और राजस्थान के शुष्क और रेगिस्तानी इलाकों के लाखों लोगों को सिंचाई और पीने का पानी उपलब्ध कराना था। इस पर गुजरात की सभी पार्टियाँ एकमत थीं। मेधा पाटकर गैंग कुछ इस तरह के भ्रम फैलाती थी कि नहर के पास वाले अमीर किसान परियोजना के पानी पर कब्जा कर लेंगे, जिससे कच्छ जैसे दूरदराज शुष्क क्षेत्रों के जरूरतमंद किसानों तक पानी पहुंच ही नहीं पाएगा!
आज सब जानते हैं कि नर्मदा परियोजना से नर्मदा का पानी जब सौराष्ट्र, कच्छ और राजस्थान पहुंचा, तो लाखों लोगों को फायदा हुआ। नर्मदा बांध के पानी से 24 लाख हेक्टेयर कृषिभूमि की सिंचाई होती है, 14 लाख घर बिजली से रोशन होते हैं, और 3.3 करोड़ लोगों को पीने का पानी मिलता है।
हमारा मानना है कि आंदोलनों के माध्यम से अशांति फैलाने वाले तत्वों पर नजर रखी जाये, क्योंकि बहुत-सी ऐसी ताकते हैं, जिनका हमेशा प्रयास रहता है कि भारत की प्रगति की राह में बाधा पहुँचाई जा सके और योगी व मोदी सरकार को बदनाम किया जाए। इन्ही ताकतों ने किसान आंदोलन के दौरान विदेशों में भारत की छवि को खराब करने का काफी प्रयास किया गया था, जबकि वे कृषि कानून किसान हित के थे।

लेख:-अशोक बालियान, चेयरमैन,पीजेंट वेलफेयर एसोसिएशन

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