कौन सी आसुरी प्रवृत्तियाँ ऐसे लोगों के दिमाग में घर बसा कर बैठी हुई हैं, जो इतने निकृष्ट ,क्रूर और जघन्य अपराध करते हैं! इंसान के भेष में यह हैवान इस धरती पर बड़ा भारी बोझ है जिन्हें जड़ से उखाड़ फेंक देने में ही भलाई है। यह कानून जो सालों- साल निर्णय पर नहीं पहुंचता और अंधा बना हुआ रहता है, कुछ इसकी भी लचर प्रणाली अपराधियों की इस वृत्ति में बढ़ावा दे रही है। दूसरों के साथ इतनी हैवानियत ,बर्बरता ,क्रूरता ,हत्या करने के बाद इन मानवेतर जानवरों को कौन सी शांति और कौन सी जिंदगी चाहिए, यह एक यक्ष प्रश्न है!! क्या मिलेगा इन्हें किसी को मारकर, जेल के सीखचें मिलेंगे और आजीवन भर्त्सना मिलेगी ऐसी अपमानजनक,पशुवत जिंदगी ढ़ोने का मतलब क्या है!
कभी लव जिहाद है !कभी पति-पत्नी का झगड़ा है! कभी लिव इन रिलेशनशिप है, आवारगी है, व्यभिचार है !पश्चिम की गलत बातों का अंधानुकरण है या अपनी जन्मजात पाश्विक वृत्तियों का चित्रण, दूसरों के दम पर ऐश करना है, दूसरों का शोषण करना है, मुफ्त खोर हैं, बेईमान है, धोखेबाज हैं। इतनी हिंसा ,इतनी क्रूरता, इतनी बर्बरता कि दूसरा मर जाए और हम शान से ऐश करें यह फिलॉसफी आई कहां से! यह कैसे संस्कार है!! कहांँ इनकी परवरिश हो रही है! कहांँ ऐसे नीच संस्कारों को बढ़ावा मिल रहा है!!
राह चलती महिलाओं को लव जिहाद में बंदूक के निशाने पर रखना ,हथियार लेकर पीछा करना ,तेजाब फेंकना, बात न मानने पर छत से फेंक देना।
बेवकूफ बनाना ,धोखेबाजी करना अनेक लड़कियों से रिश्ता रखना और अगर गलत बात का विरोध करती है लड़की, तो उसे मौत के घाट उतार देना!
इतना सामान्य हो गया है कि हम साहित्यकार लिख -लिख कर कागज काले किए जा रहे हैं, रोज आवाज उठा रहे हैं, अपना जबरदस्त विरोध दर्ज करा रहे हैं, लेकिन महिलाओं, लड़कियों ,बच्चियों के प्रति यह हादसे, यह दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं, यह हत्याएं, यह क्रूरता बंद नहीं हो रही!
कोई हत्या करके सूटकेस में लाश भर के ले जा रहा है औरत की, कोई फ्रिज के अंदर टुकड़े करके रख दे रहा है! फिर टुकड़ों को चारों तरफ फेंक रहा है और फिर से लड़कियों के चक्कर में है! शराब पी रहा है! ड्रग कर रहा है! कोई तेजाब फेंक रहा है !
कितने दरिंदे बस रहे हैं आज इस समाज में। आधुनिकता है या मानसिक विकृति! सभ्यता- मानवता का कोई लक्षण नजर नहीं आता। दूध पीती तीन महीने की बच्ची से लेकर, तीन साल की लड़की ,13 साल की किशोरी और 30 साल की युवती, 60 साल की बुजुर्ग महिला के साथ के रेप – हत्या की घटनाएं निरंतर घट रही है इनकी इतनी बड़ी श्रंँखला बन चुकी है। जिसका कोई तोड़ समझ में नहीं आता! इन जानवरों को कोई दंड नहीं दे पाता, क्योंकि कानून सालों साल अपनी प्रक्रिया में उलझा रहता है अंधे की तरह व्यवहार करता है। सालों साल, निर्बाध ,बेखौफ ऐश करते हुए घूमते हैं यह दरिंदे। आधी आबादी के साथ यह जो दुर्व्यवहार निरंतर होता जा रहा है इतना अमानवीय ,क्रूर कृत्य, दुष्कर्म हो रहा है । वहीं पुलिस एक थप्पड़ मारने पर, छेड़छाड़ पर या मारपीट ,धरेलू हिंसा पर कोई शिकायत, एफ आई आर दर्ज नहीं करना चाहती! कभी घरेलू मामला बताकर, कभी किसी के दबाव में आकर ,कभी कोई और प्रपंच रच के , कभी स्वयं भी
बुरी प्रवृत्तियों , अपराधी लोगों के साथ संलग्न होने के कारण। इंतजार करती है कि जब हादसा हो जाए तो खानापूर्ति करने पहुंच जाएं और उसके बाद टाला- मटोली करते-करते, केस को खींचा जाए, तब तक अपराधी मजे लेता रहे!सालों साल फैसला नहीं होता! सबूत इस तरह मिटा दिए जाते हैं कि सबूतों के अभाव में इन दुर्दांत अपराधियों को न्यायालय द्वारा बड़े आराम से बरी किया जाता है। यह हमारी कानून व्यवस्था पर एक काला धब्बा है।
कैसा समाज बन रहा है !कैसी यह पुलिस और प्रशासन व्यवस्था है !कैसा यह कानून है! हर दिन अमानवीय कृत्यों और अपराधों से रंगे हुए हैं समाचार पत्र। महिलाओं, लड़कियों का सड़कों पर चलना मुश्किल है, पढ़ने -लिखने जाना मुश्किल है ,नौकरी करना मुश्किल है ! यह कैसी सुरक्षा दी जा रही है महिलाओं को -लड़कियों को। कौन है जिम्मेदार! कौन करेगा न्याय! कैसे होगा स्वस्थ समाज !कैसे होगा अपराधियों से छुटकारा!! यह मानसिक विकृतियां कैसे खत्म होगी आदमियों की!! अगर यह इतने वहशी जंगली और क्रूर जानवर है तो यह समाज में क्या कर रहे हैं! इनका सही ठिकाना जंगल में होना चाहिए और इनको इस तरह से उदाहरण स्वरुप दंड दिया जाना चाहिए कि कोई इस तरह के अपराध करने न पाए। कहांँ तक हम भी लिख- लिखकर कागज काले करें, काले तो इन लोगों के मुंह होने चाहिए जो इतने काले कर्म कर रहे हैं। कानून को कड़े से कड़ा बनाया जाना चाहिए और पुलिस और प्रशासन को ईमानदारी ,तत्परता से अपने कार्य को अंजाम देना चाहिए ।
✍️अनुपमा अनुश्री,भोपाल
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