लेख-अशोक बालियान, चेयरमैन, पीजेंट वेलफेयर एसोसिएशन

भारत की जनता को चाहिए कि वे सामाजिक एवं शैक्षिक दृष्टि से जागरूक बनें, जिससे कि वह राजनीतिक दलों के नीतियों को समझते हुए गलत नीतियों का विरोध करें। और भारतीय राजनीति में राष्ट्रीय लोकदल जैसी वंशवादी पार्टियों का उन्ही के समुदाय के भीतर से विरोध किया जाना चाहिए, ताकि राजनीती में उनके समुदाय की हिस्सेदारी बढ़ सके। वर्तमान समय में देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय मामलों में वंशवादी पार्टियों के राजनीति के प्रभाव को काफी कम किया है।


हमें सोशल मिडिया पर राष्ट्रीय लोकदल के प्रवक्ता के नाम से जारी एक खबर पढने को मिली है, जो दिल्ली अंतरराष्ट्रीय जाट संसद के राष्ट्रीय लोकदल प्रमुख को निमंत्रण के विषय से शुरू है और उसमे आगे लिखा है कि जाट संसद के ये सम्मेलन प्राय भाजपा के एजेंडे से नियंत्रित/निर्देशित होते हैं। जाट संसद के सम्मेलन तो होते हैं, इनमें प्रस्ताव भी पारित होते हैं, ये लोग प्रधानमंत्री और भाजपाई नेताओं से भी मिलते रहते हैं, किन्तु इन सम्मेलनों में जाट आरक्षण को लेकर या समाज के उत्थान को लेकर जो प्रस्ताव पूर्व सम्मेलनों में पारित किए गए थे, उनको को लेकर जाट संसद की उपलब्धियां क्या क्या रही हैं, ये कभी बताते नही हैं। यह एक स्वयंभू संगठन है। राष्ट्रीय लोकदल ने सर्वसम्मति से निर्णय लिया है कि हमारे कार्यकर्त्ता और राष्ट्रीय अध्यक्ष 1 अक्टूबर को मेरठ में होने वाले अंतरराष्ट्रीय जाट संसद के भाजपा द्वारा प्रायोजित कार्यक्रम में शामिल नही होंगें।


हमने इस विषय पर अनेकों जाट समाज के बुद्धिजीवियों से बात की है और इस विषय पर उनका कहना है कि भारतीय राजनीति में वंशवाद (एक परिवार की पार्टी) के कारण पूरी राजनीति एक ही वंश के इर्द गिर्द सिमट कर रहती है। यह सवाल इसलिए भी खड़ा हो जाता है कि कई बार वंशवाद की ये बेल राजनीतिक दलों में योग्य प्रतिभाओं और अच्छे विकल्पों की राह में रोड़े बनकर खड़ी हो जाती है।
भारतीय राजनीति में वंशवाद (एक परिवार की पार्टी) राष्ट्रीय लोकदल इसका एक जीता-जगता उदाहरण है,जो योग्य प्रतिभाओं और अच्छे विकल्पों की राह में रोड़े बनकर खड़ी हो जाती है। हालांकि इस सोच के कारण वह स्वमं भी खत्म होने के कगार पर है। बीते लोकसभा चुनावों में करारी हार के बावजूद कांग्रेस आज तक गांधी परिवार की छाया से उबरने की हिमाकत नहीं कर पाई है, तो उत्तर प्रदेश में पूरी राजनीति ही मुलायम सिंह यादव कुनबे के इर्द गिर्द सिमट गई है।
मुलायम सिंह यादव जैसा ही हाल कुछ कुछ उनके समधी और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव का भी है। चारा घोटाले में सजा पाने के बाद लालू यादव खुद तो चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य साबित हो गए, लेकिन उन्होंने अपने परिवार को राजनीति में फिट कर लिया है। ट्रेंड बताते हैं कि जिन राज्यों में राजनीति में सबसे ज्यादा वंशवाद है, वहां पर गरीबी भी अधिक है।
अंतरराष्ट्रीय जाट संसद के संयोजक रामअवतार पलसानिया व पीएस कलवानिया पिछले कुछ समय से जाट समाज के हित में सामाजिक सम्मेलन कर रहे है, उनकी कुछ समय पहले देश के प्रधानमंत्री मोदी से दिल्ली में पीएम आवास पर मुलाकात भी हुई थी। इस मुलाकात के दौरान गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत और बेंगलूरू के प्रमुख उद्योगपति चौधरी रामसिंह कुल्हरी भी मौजूद थे। इन जाट नेताओं ने जाट समाज की सभी जगह उचित हिस्सेदार व समाज के महापुरुषों के गौरवशाली इतिहास को केन्द्रीय और प्रदेश के शिक्षा पाठ्यक्रम में शामिल करने की मांग रखी थी।
इस मुलाकात में प्रधानमंत्री मोदी ने जाट वर्ग के दो युवाओं की मुहिम को आशीर्वाद भी दिया था। तबसे ही वंशवाद वाली पार्टी राष्ट्रीय लोकदल इनको भाजपा के एजेंडे पर कार्य करने वाले बताने लगे है। आज 21वीं सदी में भारत आकांक्षाओं का देश है; जो तकनीकी और ग्लोबल परिस्थितियों के ज्ञान से युक्त है और अंतरराष्ट्रीय जाट संसद के संयोजक रामअवतार पलसानिया व पीएस कलवानिया प्रतिभा से बरे पढ़े-लिखे जाट समुदाय के युवा चेहरे है।
अब देश में वंशवाद वाली पार्टियों का वजूद खत्म होता जा रहा है और उनसे जुड़ने वाले समुदाय को नुकसान होता है उनकी राजनीती में हिस्सेदारी घटती है। वर्ष 2004 में कांग्रेस के साथ हाथ मिलाने के बाद पार्टी के तीन सांसद विजयी हुए थे। और वर्ष 2009 में भाजपा के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ने वाले रालोद के पांच सांसद जीते थे। इसके बाद वर्ष 2014 और वर्ष 2019 लोकसभा चुनाव में रालोद खाता नहीं खोल सका था।
भारतीय राजनीति में वंशवाद ने अपनी पैठ गहराई तक जमा रखी है। देश में विकास की राजनीति की स्थापना होनी चाहिए, न कि वंशवाद की। भारत में राजनैतिक वंशवाद का सबसे महत्वपूर्ण कारण व्यक्ति पूजा भी रहा है, चाहे वह योग्य भी न हो। वंशवाद वाली पार्टी के नेता जनता की आकांक्षाओं को समझने वाले जमीन से उठे सक्षम जननेताओं को रोकने का प्रयास करते है, जैसे वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय लोकदल ने नेता चौधरी अजित सिंह से जाट समुदाय में उभरते नेता डॉ संजीव बालियान की लोकसभा सीट से उनके सामने चुनाव लड़ा था। डॉ बालियान ने वेस्ट यूपी के लिए अनेकों बड़ी कार्य योजना तैयार की हुई है और उन पर अमल भी हो रहा है। एक नए बदलाव के लिए डॉ संजीव बालियान जैसे पढ़े लिखे युवाओं का राजनीति में सक्रिय होना बहुत जरूरी है।
किसी भी वंशवाद परिवार की दूसरी पीढ़ी का राजनीति में आना गलत नहीं है, लेकिन राजनीतिक नेतृत्व पर यह दावा उनके गुण-कौशल और कार्य निष्पादन के आधार पर होना चाहिए, न कि जन्मजात अधिकार के रूप में। भारतीय राजनीति में परिवारवाद एवं वंशवाद तब तक रहेगा, जब तक कि इसका विरोध भीतर से न किया जाए।
हमे समाज सुधार के कार्यों में अंतरराष्ट्रीय जाट संसद के संयोजक रामअवतार पलसानिया व पीएस कलवानिया जैसे पढ़े-लिखे युवाओं को अधिक से अधिक मौका देने की जरूरत है। लेकिन वंशवाद वाले राजनैतिक पार्टियाँ उनको अपने एजेंडे से अलग समाज सेवा का कार्य भी नहीं करने देते है, जैसे राष्ट्रीय लोकदल के एक प्रवक्ता ने कहा है कि उनकी पार्टी के कार्यकर्त्ता और राष्ट्रीय अध्यक्ष 1 अक्टूबर 2023 को मेरठ में होने वाले अंतरराष्ट्रीय जाट संसद के भाजपा द्वारा प्रायोजित कार्यक्रम में शामिल नही होंगें। इसीलिए अब समय आ गया है कि इस तरह की सोच रखने वाली भारतीय राजनीति में राष्ट्रीय लोकदल जैसी वंशवादी पार्टियों का उन्ही के समुदाय के भीतर से विरोध किया जाना चाहिए, ताकि राजनीती में उनके समुदाय की हिस्सेदारी बढ़ सके।

होने वाले अंतरराष्ट्रीय जाट संसद के भाजपा द्वारा प्रायोजित कार्यक्रम में शामिल नही होंगें। इसीलिए अब समय आ गया है कि इस तरह की सोच रखने वाली भारतीय राजनीति में राष्ट्रीय लोकदल जैसी वंशवादी पार्टियों का उन्ही के समुदाय के भीतर से विरोध किया जाना चाहिए, ताकि राजनीती में उनके समुदाय की हिस्सेदारी बढ़ सके।

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