ऊर्जावान रचनाकार सुश्री संभावना पंत जी ने अपनी दुआ इस प्रकार भेजी है :-‘अपराजिता’ कहानी (संजीव जायसवाल’संजय’जी) ने वाकई मन मस्तिष्क पुलकित कर दिया !!
हालांकि मैंने इसका आधा अंश कल पढ़ा थोड़ा रात में और बाक़ी बचा हुआ अभी अभी ….!
अपराजिता कहानी मुझे अपनी ओर आकर्षित करती रही और जैसे ही यह पूरी पढ़ी तो गहरी सांस के साथ एक बात जह्न में उठी कि लेखक और लेखक के विचारों की गहनता प्रशान्त महासागर के नितल से भी ज्यादा गहन रही होगी इसलिए अपराजिता कहानी की मुख्य नायिका श्वेता की नब्ज को मस्तिष्क टटोलता रहा होगा और कलम टाइपराइटर की भांति खट खट कट खट कट खट ………!

ऐसी कहानी अब तक नहीं पढ़ी थी। यह अद्वतीय इसलिए भी है क्योंकि इसमें आधुनिकता के तत्वों के साथ- साथ काफी कुछ ऐसी वास्तविकताओं का समावेश है जो हमारे लिए अपरिचित और अकल्पनीय है तो वहीं कहानी के लिए अपरिहार्य!

‘अपराजिता’ महिला प्रधान कहानियों के मध्य एक विचित्र ख्वाब बुनती है। कहानी में एक तरफ दृढ़ निश्चयात्मक स्वप्न हैं तो वहीं दूसरी ओर उनको साकार करने की जिम्मेदारी, जिद, संघर्षशील पथ जिसमें सम्मान और अपमान से श्वेता आमना-सामना कर कोसों आगे निकल जाती है।

सामाजिक प्राणी होने के नाते मनुष्य को एक दूजे पर किसी न किसी रुप में निर्भर रहना पड़ता है इसे अपराजिता कहानी में लेखक ने बखूबी दर्शाया है। कहानी के नायकों की तरफ झांके तो पता चलता है कि जहां प्रखर अपनी प्रखर बुद्धि और विवेक के साथ एक सच्चे प्रेमी के रूप में हर सम्भव, हर पल प्रेमिका के सुख- दुख में बना रहता है तो वहीं प्राचीन भारतीय संस्कृति, सभ्यता और परम्पराओं को सजीव रुप देते गुरु- शिष्य का आपसी संबंध अनेक दिशाओं, दशाओं और गतिविधियों से परिचित कराता है।

कहानी में प्रखर के तबले की थाप और श्वेता का अपनी बात पर अडिग रहना और तांडव नृत्य से अर्धनारीश्वर अवतार में परिवर्तित हो जाना अद्भुत,अद्वीतीय व अतुलनीय छाप छोड़ता है।

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि कथक नर्तक विभिन्न आभूषणों से सुसज्जित होकर अपने हाथों की गति और घुंघरुओं की झनकार के मध्य व्यापक फुटवर्क, अपने शरीर की गतिविधियों और लचीलेपन के माध्यम से विभिन्न कहानियां सुनाते हुए किया जाता है जिसमें श्वेता को महारत हासिल है। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण अपने चेहरे के भावों के माध्यम से दर्शकों का दिल जीतने की शक्ति जो अपराजिता कहानी को पढ़कर प्रत्येक पाठक के मस्तिष्क पटल पर चल -चित्र का लाइव प्रसारण कर ही गया होगा।

यह कहानी भक्ति आंदोलन के उस दौर को भी जीवंत करती है जिस दौर में कत्थक विकसित हुआ। जब विशेष रूप से हिंदुओं के प्राण प्रिय भगवान श्रीकृष्ण के बचपन और कहानियों को शामिल करके , साथ ही स्वतंत्र रूप से उत्तर भारतीय राज्यों के दरबार में भी ….!
तो वहीं मुगल शासन की अवधि के दौरान, जहां पर स्वयं सम्राट कथक नृत्य के प्रमुख संरक्षक थे और अपने शाही दरबारों में इसे सक्रिय रूप से बढ़ावा देते थे। नतीजतन, यह फ़ारसी तत्वों को प्रदर्शित करने वाला एकमात्र भारतीय शास्त्रीय नृत्य भी है। जिसे अपराजिता कहानी में श्वेता, प्रखर और आचार्य नागाधिराज जैसे पात्रों के माध्यम से प्रसिद्ध लेखक संजीव जायसवाल’संजय’जी ने प्रस्तुत किया है।

सबसे अहम बात यहां पर यह देखी गई कि श्वेता की शास्त्रीय संगीत को पहचान दिलाने की पिपाशा और नृत्य शैली की गहन मिंमासा जो निर्णायकों के आचार-विचार और व्यवहार को पल भर में तख्ता पलट करने की जादुई शक्ति रखती है, जो निर्णायकों की कल्पना से परे थी। वह समय जब निर्णायक साक्षात्कार के माध्यम से श्वेता को हतोत्साहित करने की जद्दोजहद में लगा था और श्वेता ने गार्गी -याग्यवल्कय संवाद की भांति फुर्ती से प्रत्युत्तर देकर समस्त निर्णायक मण्डली को निरप्रश्न कर दिया….!

साथ ही मन मस्तिष्क में ऐसी विचारधारा रखने वाले व्यक्तियों की आन्तरिक खोज और अशुद्धियों को बाहर करने का एक मौका भी दिया। इस प्रकार श्वेता और प्रखर की कलाबाजी वाकई विद्योत्तमा और कालिदास के शास्त्रार्थ की भी याद दिलाते हैं।

संजीव जी की प्रत्येक रचना की भांति जो आश्चर्यजनक और अकल्पनीय ट्विस्ट अन्त में प्रकट हुआ वो स्तब्ध और अचंभित कर गया।
साहित्य प्रेमियों को संजय जी को अवश्य पढ़ना चाहिए बाक़ी भी नहीं तो अपराजिता को तो एक बार अवश्य पढ़िना ही चाहिए।

हार्दिक शुभकामनाएं आदरणीय गुरूजी मुझे विश्वास है कि अगली कहानी भी इसी खूबसूरती इसी आकर्षकता से सुसज्जित होगी।
धन्यवाद
✍️सम्भावना पन्त

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