इस धरती पर न जाने कितने युद्ध लड़े गए हैं, जिनमें से कुछ को इतिहास में जगह मिली, तो कुछ को नहीं। आज से ठीक 125 साल पहले 12 सितंबर, 1897 को एक ऐसा ही युद्ध हुआ था जिसने इतिहास के पन्नों में अपना नाम हमेशा के लिए अमर कर दिया। यह नाम है सरागढ़ी युद्ध। सारागढ़ी के इस युद्ध को अखंड भारत पर हुआ सबसे बड़ा युद्ध माना जाता है। इस युद्ध में 21 सिखों ने सारागढ़ी किला बचाने के लिए 10 हजार अफगानी सैनिकों को धूल चटी दी थी और उलटे पांव भागने पर मजबूर कर दिया था।
वह 1897 का दौर था जब भारत पर अंग्रेजों का दबदबा बढ़ता जा रहा था। अंग्रेज अफगानिस्तान पर कब्जा करना चाहते थे। वर्ष 1897 तक अंग्रेजों ने अफगानिस्तान पर हमले करना भी शुरू कर दिए थे। उस समय अखंड भारत की सीमाएं अफ़ग़ानिस्तान से मिलती थी और अफ़ग़ान और भारत की सीमा पर ब्रिटिश सेना के कब्ज़े में दो किले गुलिस्तान का किला और लॉकहार्ट का किला थे। इन दोनों किलों के पास ही सारागढ़ी के नाम से एक चौकी हुआ करती थी। यह चौकी दोनों किलों के बीच संचार का जरिया थी। इस चौकी की सुरक्षा की जिम्मेदारी 36वीं सिख रेजिमेंट के पास थी।
सारागढ़ी किले पर बनी आर्मी पोस्ट पर 21 सिख सिपाही तैनात थे। अफगानों को लगा कि इस पोस्ट पर कब्जा करना काफी आसान होगा। लेकिन पोस्ट पर तैनात सिख इतनी बड़ी सेना को देखकर भागे नहीं, उन्होंने आखिरी सांस तक ऐसी लड़ाई लड़ी जिसने अंग्रेजों को भी सोचने पर मजबूर कर दिया। उनके पास ज्यादा हथियार नहीं थे, जब उनके पास गोलियां खत्म हो गई तो उन्होंने तलवारों से ही दुश्मन पर हमला बोल दिया। ऐसा युद्ध हुआ कि उसको देखकर अफगानी तो दूर, अंग्रेज भी कांप उठे।
12 सितंबर, 1897 को सुबह 8 बजे सारागढ़ी किले के संतरी ने दौड़कर अंदर खबर दी कि हज़ारों पठानों का एक लश्कर झंडे और भाले के साथ सारागढ़ी किले की तरफ बढ़ रहा है। उनकी तादाद बहुत बड़ी है। संतरी को फ़ौरन अंदर बुला लिया गया और सैनिकों के नेता हवलदार इशर सिंह ने सिग्नल मैन गुरमुख सिंह को आदेश दिया कि पास के फोर्ट लॉकहार्ट में तैनात अंग्रेज अफसरों को तुरंत इस बारे में बताया जाए और उनसे पूछा जाए कि उनके लिए क्या हुक्म है?
कर्नल हॉटन ने हुक्म दिया, “होल्ड योर पोज़ीशन।” एक घंटे के अंदर किले को हर तरफ से घेर लिया गया और उनका एक सैनिक हाथ में सफ़ेद झंडा लिए क़िले की तरफ़ बढ़ा। उसने चिल्ला कर कहा, “हमारा तुमसे कोई झगड़ा नहीं है, हमारी लड़ाई अंग्रेजों से है। तुम तादाद में बहुत कम हो, मारे जाओगे। हमारे सामने हथियार डाल दो। हम तुम्हारा ख्याल रखेंगे और तुमको यहाँ से सुरक्षित निकल जाने का रास्ता देंगे।”
जवाब में इशर सिंह ने कहा कि, ‘ये अंग्रेज़ों की नहीं महाराजा रणजीत सिंह की जमीन है और हम इसकी आखिरी सांस तक रक्षा करेंगे।’ फिर अचानक ‘बोले सो निहाल, सत श्री अकाल’ का जयकारा सारागढ़ी क़िले में गूंज उठा और फिर शुरू हुई 7 घंटे तक तक चलने वाली वो लड़ाई जिसमें 21 सिखों ने अफगानी सैनिकों का किले के अंदर प्रवेश मुश्किल कर दिया और उन्हें वापस लौटने पर मजबूर कर दिया।
✍️संचिता मणि त्रिपाठी
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