शास्त्रों के अनुसार लक्ष्मी जी को धन और संब्रद्धि का प्रतीक माना गया है। जिसकी वजह से लक्ष्मी जी को इसका अभिमान हो जाता है। विष्णु जी इस अभिमान को खत्म करना चाहते थे इसलिए उन्हों ने लक्ष्मी जी से कहा कि स्त्री तब तक पूर्ण नहीं होती है जब तक वह माँ ना बन जाये। लक्ष्मी जी के कोई पुत्र नहीं था, इसलिए यह सुन कर वे बहुत निराश हो गयी। तब वे देवी पार्वती के पास गयी मदद मांगने के लिए।,
पार्वती जी को दो पुत्र थे इसलिए लक्ष्मी जी ने उनसे एक पुत्र को गोद लेने को कहा। पार्वती जी जानती थी कि लक्ष्मी जी एक स्थान पर लंबे समय नहीं रहती हैं। इसलिए वे बच्चे की देख भाल नहीं कर पाएंगी। लेकिन उनके दर्द को समझते हुए उन्होंने अपने पुत्र गणेश को उन्हें सौप दिया।

इससे लक्ष्मी जो बहुत प्रसन्न हुई और उन्होंने कहा कि वे गणेश का बहुत ध्यान रखेंगी। और जो सुख और समृद्धि के लिए लक्ष्मी जी का पूजन करते हैं उन्हें उनसे पहले गणेश जी की पूजा करनी पड़ेगी, तभी मेरी पूजा संपन्न होगी। तब से आज तक दीपावली पर लक्ष्मी जी की पूजा से पहले गणेश जी की पूजा की जाती है ।

हिंदु धर्म की परंपराओं के मुताबिक, ऋद्धि-सिद्धि के अधिपति गणपति और धन-संपत्ति की अधिष्ठात्री देवी मां लक्ष्मी हैं। इनकी अनुकंपा प्राप्त हो जाने पर संसार का सारा धान्य-सुख मिल जाता है। ऐसा माना जाता है कि ये किसी भक्त या एक स्थान पर अधिक समय तक नहीं टिकती हैं। इसलिए हर गृहस्थ दिपावली के दिन इनकी स्थापना ऐसे मुहूर्त में करना चाहता है, जिसकी वजह से भगवती लक्ष्मी उनके यहां स्थिर होकर रहें ।

मान्यता है कि माता लक्ष्मी उसी के पास टिकती हैं, जिसके पास बुद्धि होती है, वही लक्ष्मी अर्थात धन का संचय कर सकता है और गणपति बुद्धि के स्वामी हैं। यही वजह है कि लक्ष्मी एवं गणपति की एक साथ पूजा का विधान है जिससे धन और बुद्धि एक साथ मिले ।
✍️संचिता मणि त्रिपाठी

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