पन्ना प्रमुख से लेकर बूथ अध्यक्ष तक भी नहीं कर पा रहे हैं कार्यकर्ताओं के काम,विधायक और मंत्रियों के फोन अधिकारी सुनते हैं लेकिन करते नहीं काम,थाने से लेकर सरकारी कार्यालय तक भाजपाई हुए नदारद

 

प्रशांत त्यागी, देवबंद। संवाददाता

कहते हैं कि राजनीति के अंदर हर किसी की अपनी एक महत्वाकांक्षा होती है, खासकर उस कार्यकर्ता की जो पार्टी का झंडा उठाकर दिन-रात एक किए हुए बिना तनख्वाह वेतन के पार्टी के लिए बूथ स्तर तक कड़ी मेहनत करता है। पन्ना प्रमुख से लेकर पोलिंग बूथ तक मतदाताओं को पहुंचाने का काम करता है। उस कार्यकर्ता का केवल एक उद्देश्य रहता है कि वह जिस राजनीतिक दल से जुड़ा हुआ है उसकी सरकार सत्ता में आए और उनकी सुनी जाए और अधिकारी वर्ग से उन्हें सम्मान मिले।

वर्ष 2014 में केंद्र और 2017 में उत्तर प्रदेश की सत्ता पर काबिज होने वाली सत्तारूढ़ भाजपा के कार्यकर्ता व पार्टी किन नेताओं ने ऐसा कभी नहीं सोचा था कि उन्हें अपनी सत्ता में विपक्ष से ज्यादा शोषण और अपमानित होना पड़ेगा। जी हां बिल्कुल आप इन सब बातों को सुनकर चौंकिएगा मत क्योंकि सच्चाई सुनना हर किसी व्यक्ति को बुरा लगता है। जो आज बातें हम आपके बीच लेकर आए हैं वह सुनकर आप भी आश्चर्यचकित होंगे की जो कार्यकर्ता पार्टी को फर्श से अर्श पर बैठने का काम करता है वही कार्यकर्ता आज जिस प्रकार से थानों, सरकारी कार्यालय, वह अन्य ऐसे स्थानों से गायब है जो स्थान जनता को न्याय दिलाने का काम करते हैं। इतना ही नहीं जो पार्टी के नेता व कार्यकर्ता चुनाव के समय भाजपा के पक्ष में वोट दिलाने का काम कर रहे थे, वह आज गांव में अपना चेहरा भी दिखाने से बचते हैं। वजह है लेखपाल से लेकर ग्राम सचिव और ब्लॉक से लेकर जिला कहीं भी उनकी सुनवाई नहीं हो रही है। परिणाम स्वरूप विपक्षी पार्टी से जुड़े नेता अधिकारियों से सांठ गांव कर पहले की तरह ही उन कार्यकर्ताओं व पार्टी नेताओं व समर्थकों का शोषण कर रहे हैं जिन कार्यकर्ताओं ने भाजपा को सत्ता दिलाने में अपना सब कुछ त्याग दिया था।

थाना नागल पर भीम आर्मी और किसान यूनियन का कब्जा, नहीं होते कार्यकर्ताओं के काम

आप सहारनपुर जनपद का थाना नागल बात करें तो यहां सत्ता पक्ष का कोई भी नेता खाने में दिखाई नहीं देता, इस थाने पर भारतीय किसान यूनियन से जुड़े नेता और भीम आर्मी के कार्यकर्ताओं का कब्जा है, जिसके चलते यहां सत्ता पक्ष के नेताओं की तो सुनाता दूर वह थाने में भी नजर नहीं आते, अगर वह अपनी उत्पीड़न का मामला लेकर थाने पहुंचते हैं तो उल्टे उनके साथी बदसलूकी की जाती है और थाने से भगा दिया जाता है। ऐसी ही स्थिति जनपद के अन्य थानों की भी है।

तहसील और ब्लॉक में भी देनी पड़ती है रिश्वत

तहसील, बीडीओ, तहसीलदार समेत ज्यादातर सरकारी कार्यालयों में भी ऐसा ही हाल, विधायक और सांसद व मंत्री अगर किसी मामले को लेकर यहां फोन करें तो अधिकारियों के चहेरे गुस्से में लाल हो जाते हैं काम तो छोड़िए, जनहित के कार्यों के लिए भी यहां सुविधा शुल्क चाहिए। वरना सिफारिश यहां सब बेकार है।

मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री के प्रति समर्पित कार्यकर्ता बताते हैं की सरकार उनकी है, लेकिन पूरे सिस्टम पर कब्जा विपक्षी दलों और कुछ संगठनों का हैं । वह अपने और कार्यकर्ताओं का काम कराने में भी असमर्थ हैं।

रिपोर्ट प्रशांत त्यागी

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