कहा जानता हूं… मैं
प्रेम की परिभाषा
नही हैं मेरे पास..
शब्दकोष प्रेम के
ना प्रेम का कोई इतिहास
तुम और तुम्हारा विश्वास
महफूज रखता हूं तुम दोनो को
वो गांठ जो बांधी हमने
कसमों वादों और वफाओं से
वो सपने जो देखे
एक दूजे की आंखों से
वो कदम जो उठते हैं
एक दूजे की आवाजों से
वो कसमें
वो वादें
वो वफाएं
सब संजो के रख दिए
तेरी मेरी दुआओं की तिजोरी में
हाथों की लकीरों से फिसल
वो टूटेंगे नही ना अब

कहा मांगा तुमसे
मिलना हमारा
कहा मांगा तुमसे
बातें पल दो पल की
कहा कहां तुम चलो
पल दो पल कदम दर कदम
हां खलता हैं मुझे
पल दो पल की बात ना होना
खलता हैं मुझे
कसम दर कदम ना चलना
अब खलता हैं मुझे
तुम्हारा ना मिलना..
संजीव

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By admin

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