आर्थिक संकट से जूझ रहे श्रीलंका में स्थिति धीरे-धीरे सामान्य हो रही है। हालांकि, इस क्रम में जनता पर टैक्स की मार बढ़ती ही जा रही है। कर्ज में डूबे श्रीलंका ने अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए करों में वृद्धि की है। अब इसके विरोध में कई ट्रेड यूनियन उतर आई हैं।
श्रीलंका की करीब 40 ट्रेड यूनियन ने बुधवार को देशव्यापी हड़ताल की चेतावनी दी है। यूनियनों की तरफ से कहा गया है कि अगर उनकी मांग नहीं मानी गई, तो एक मार्च से देशव्यापी हड़ताल की जाएगी। बंदरगाह, बिजली, पानी, और दूरसंचार जैसे क्षेत्रों से ट्रेड यूनियनों की चेतावनी तब आई जब उन्होंने कर वृद्धि के कारण व्यवसायों को होने वाली समस्याओं के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया।
पोर्ट ट्रेड यूनियन के निरोशन गोराकानागे ने कहा, हम कर वृद्धि का लगातार विरोध कर रहे हैं और सरकार से कह रहे हैं कि अगर हमारी मांग न मानी गई तो हम हड़ताल शुरू कर देंगे। वहीं बिजली ट्रेड यूनियन के रंजन जयलाल ने कहा, हम यहां कर अधिनियम का विरोध करते हैं। बिजली उपभोक्ताओं पर उच्च टैरिफ का बोझ है।
IMF की मंजूरी का इंतजार कर रहा श्रीलंका
बता दें, श्रीलंका की सरकार ने जनवरी से प्रभावी रूप से कर वृद्धि की शुरुआत की थी, सरकार ने यह फैसला अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के बेलआउट पैकेज के लिए उनकी शर्तों के तौर पर लागू किया। गौरतलब है कि श्रीलंका बीते चार सालों में 2.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर के बेलआउट पैकेज के लिए आईएमएफ की औपचारिक मंजूरी का इंतजार कर रहा है। इस बेलआउट पैकेज के जरिए उसकी कोशिश अब तक के सबसे खराब आर्थिक संकट से उबरने की है।
श्रीलंका पर 51 अरब डॉलर का विदेशी कर्ज
श्रीलंका पर 51 अरब डॉलर का विदेशी कर्ज बकाया है, जिसमें से 28 अरब डॉलर का भुगतान 2027 तक किया जाना है। देश की स्थिति ऐसी है कि भारत ने भोजन और चिकित्सा आपूर्ति के अलावा हजारों टन डीजल और पेट्रोल भेजकर कर्ज में डूबे श्रीलंका की मदद की है। आर्थिक संकट के चलते श्रीलंका को भोजन, दवा, रसोई गैस और अन्य ईंधन, टॉयलेट पेपर और यहां तक की माचिस जैसी जरूरी वस्तुओं की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है। लोगों को ईंधन और भोजन के लिए दुकानों के बाहर घंटों इंतजार करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।
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