अशोक बालियान,चेयरमैन,पीजेंट वेलफ़ेयर एसोशिएसन

देश के किसान संगठनों को माँग उठाने का अधिकार है।परंतु जनता का जनजीवन बाधित करने व ज़ोर-ज़बरदस्ती कर अपनी माँगे मनवाने का तरीका सही नहीं है।पिछले किसान आंदोलन में नाकेबंदी से उद्योगों को हज़ारों करोड़ का नुक़सान हुआ था व हिंसा हुई थी।यदि इस प्रवृति को बढ़ावा दिया गया तो,देश में सब ज़ोर-ज़बरदस्ती अपनी माँगे मनवाने लगेंगे।
यह बात बिल्कुल भी उचित नहीं कि कुछ संगठन इस बात पर अड़ जाये कि वे जो भी माँगे रख रहे है, उन्हें उसी रूप में माना जाये।हमने पिछले सप्ताह देश के कृषि मन्त्री श्री अर्जुन मुंडा से मिलकर एमएसपी व किसानों के लिये उपयुक्त बाज़ार पर वार्ता की थी।
जो कथित किसान नेता पिछले किसान आंदोलन में किसान हित के कृषि क़ानूनों का विरोध कर रहे थे, वही अब एमएसपी पर तर्कहीन डिबेट करते टीवी पर आ रहे है। तीन कृषि क़ानूनों से भारत के किसान को अपनी उपज बेचने के लिए दुनिया के बाज़ार में पहुँचने का अवसर मिलता।क्योंकि बिना अनुकूल बाज़ार के एमएसपी की गारंटी का कोई मतलब नहीं होगा।
तीन कृषि क़ानूनों की वापसी की घोषणा ने किसानों को उसी स्थिति में धकेल दिया ,जहां वे पहले थे।
देश में पिछला किसान आंदोलन एक शृंखला की कड़ी था। पहले सीएए का विरोध हुआ था,फिर किसान आंदोलन हुआ और दोनों ही आंदोलन में हिंसा हुई थी।इसमें सरकार का विरोध समझ में आता है, लेकिन वह फिर से एक व्यक्ति विशेष का विरोधी हो जाता है।अर्थात् यह पूरा आंदोलन प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी के विरोध में जाकर खड़ा हो जाता है।जबकि मोदी सरकार ने किसान के कल्याण के बहुत सारे कार्य किए हैं।
मोदी सरकार ने अपने दोनों कार्यकाल में पिछली मनमोहन सरकार के कार्यकाल के मुक़ाबले में कृषि उपज के एमएसपी में दो गुना वृद्धि की है और एमएसपी पर ही दो गुना ख़रीद की है। और कृषि में काम आने फर्टिलाइजर में कोई ख़ास बढ़ोतरी नहीं हुई है।फिर भी कुछ कथित नेता टीवी पर तर्कहीन आँकड़े देकर किसानों को मोदी सरकार के विरुद्ध भड़काने का कार्य कर रहे है।
वर्तमान किसान आंदोलन के बारे में केंद्र सरकार को ख़ुफ़िया जानकारी मिली थी कि इस बार किसान अपने साथ ट्रैक्टर-ट्राली और राशन भी लेकर आने वाले हैं।यानी पिछली बार की तरह इस बार किसानों का प्लान लंबे समय तक दिल्ली के अलग-अलग बॉर्डर पर धरना देने का है।जिसमें हिंसा भी हो सकती है।इसीलिए उनको पंजाब- हरियाणा बॉडर पर ही रोका गया है।
किसानों की मांगों को लेकर केंद्र सरकार व किसान नेताओं के साथ दो बैठकें चंडीगढ़ में हो चुकी हैं, लेकिन कुछ माँगों पर सहमति नहीं हो पायी थी। केंद्र सरकार आगे भी बातचीत के लिए तैयार है।
भारत में वर्ष 2020 में तीन कृषि कानूनों के खिलाफ संयुक्त किसान मोर्चा के आंदोलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कृषि क़ानूनों को वापिस लेने की घोषणा कर दी थी। किसान आंदोलन खत्म होने के कुछ ही समय बाद उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव हुआ था।
उस समय ऐसी उम्मीद जताई जा रही थी कि प्रदेश में किसान आंदोलन की वजह से भारतीय जनता पार्टी की बुरी तरह से हार होगी, लेकिन चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की जीत हुई थी। उस वक्त संयुक्त किसान मोर्चा के नेता योगेंद्र यादव ने कहा था कि हम विपक्ष के लिए पिच तैयार करते है और विपक्ष उस पिच का फायदा नहीं उठाते है।
देश में कुछ ही महीने में लोकसभा का चुनाव होने जा रहा है और कुछ बुद्धिजीवियों का कहना है कि जहाँ एक तरफ़ लोकसभा के चुनाव के लिए विपक्ष के लिए फिर से पिच तैयार करने की कोशिश की जा रही है।वही किसानों के नाम पर कुछ किसान नेता अपने उद्देश्यों को आगे बढ़ाने के लिये उनका प्रयोग अलगाववाद के लिए भी कर सकते है।
किसान आंदोलन में वामपंथी विचाराधारा के किसान नेता भी शामिल है।और इनसे प्रेरित होकर कुछ किसान नेता सरकार के विरुद्ध किसानों को हिंसा के लिए उकसाते है।पंजाब में तो किसानों पर एमएसपी का पूरा लाभ मिल रहा है, इसलिए लगता है कि इन किसान नेताओं को दिल्ली भेजने में आम आदमी पार्टी सहित कुछ अन्य ताकतों का सहयोग है।जबकि किसान संगठनों को किसी राजनैतिक दल या अन्य ताकतों का टूल नहीं बनना चाहिए।
हम किसान नेताओं से अनुरोध करते है कि कृपया करके तर्कपूर्ण बातचीत का दौर जारी रखें।और किसान हित की उचित माँगे ही रखे।लोकतंत्र में तर्कपूर्ण संवाद ही महत्वपूर्ण होता है।

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