किसान आंदोलन के नाम पर सिखों में अलगाववाद की भावना पैदा की जाने की कोशिश की जा रही है।इसलिए किसान आंदोलन के नाम पर सिखों को भड़काने वाले अलगवादियों व चरमपंथियों को कुचलना होगा।वरना किसानों के नाम पर चलाया जा रहा किसान आंदोलन एक ख़तरनाक मोड़ ले सकता है।
जिस तरह “दिल्ली चलों “आंदोलन में वहाँ से आंदोलन में शामिल आंदोलनकारियों के विडियो सामने आ रहे हैं उससे यह बात क्लीयर होती जा रही है कि इस बार किसान आंदोलन का मुख्य उद्देश् एमएसपी पर गारंटी नहीं है। “दिल्ली चलों ” आंदोलन में शामिल आंदोलनकारियों की एक आज वीडियो वायरल हो रही है। इस वीडियो में कुछ आंदोलनकारी कह रहे है कि दो तीन साल में खबर मिलेगी की मोदी जी मारे गये है।
इससे पहले किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल का एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें वो मोदी का ग्राफ गिराने की बात कह रहे हैं।और भी ख़तरनाक वीडियो आंदोलनकारियों के बीच से आ रहे है, जो उचित नहीं है।
सिख धर्म सनातन धर्म का ही एक पंथ है। सिख धर्म के गुरुओं ने सनातन धर्म के लिए बलिदान दिये है। “गुरू ग्रन्थ साहब” को दशमेश गुरू गोविन्द सिंह जी ने अपने बाद गुरू घोषित किया उसमें “राम” शब्द 2 हज़ार से अधिक बार आया है।
इसके बाद भी जब कुछ अलगाववादी व चरमपंथी स्वयं को हिन्दुओं से अलग बताते हुए खालिस्तान की बात करते हैं, तो हैरत होती है।विदेशों में बैठे ये अलगाववादी केंद्र की मोदी सरकार को हिंदुओं की सरकार बता कर देश में अलगाववाद पैदा करने का प्रयास कर रहे है।

वीडियो वायरल है राजसत्ता पोस्ट इसकी पुष्टि नहीं करता है

इन अलगाववादी द्वारा अपने निहित स्वार्थ में मुस्लिम आक्रान्ताओं के हाथों हुए गुरुओं के अमर बलिदान को भुलाना अपने पूर्वजों के प्रति विश्वासघात और कृतघ्नता की पराकाष्ठा है।
भारत में खालिस्तान की मांग करने वाले लोगों पर जब बंदिशें लगी थी, तो वे अलगाववादी व आतंकवादी अन्य देशों में भाग गए थे और अब वहीं से बैठकर किसानों के नाम पर चलने वाले आंदोलन में हिंसा करवाने व सिखों में अलगाववाद की भावना भड़काने का कार्य कर रहे है।
वर्ष 1980 के दशक से वर्ष 1990 के दशक के प्रारंभ तक पंजाब व्यापक आतंकवाद के दौर से गुजरा था। किसान आंदोलन के नाम पर कुछ विदेशी शक्तियों द्वारा इस आंदोलन को पुनर्जीवित करने का भी प्रयास किया जा रहा है, ताकि भारत में अशांति और असंतोष फैलाया जा सके।
हमने कृषि मन्त्री अर्जुन मुंडा से एक सप्ताह पहले एमएसपी को लेकर वार्ता की थी। इस वार्ता में हमने सुझाव दिया था कि कृषि उपज के निर्यात पर प्रतिबंध बहुत ज़रूरी होने पर ही लगाया जाय। कृषि बाजार को किसान हित में और बेहतर किया जाये तथा एमएसपी के अन्तर्गत आने वाली फसलों का ग्रेडिंग के अनुसार रिजर्व मूल्य तय किया जा सकता है।एमएसपी के इस रिजर्व मूल्य से कम पर ख़रीद- बिक्री को प्रतिबंधित किया जा सकता है।
दिल्ली चलों आंदोलन के किसान नेता एक माँग पूरी होने पर दूसरी माँग रखेंगे, क्योंकि इन आंदोलन के पीछे भी कुछ शक्तियाँ है, जो आंदोलन को लंबा चलाना चाहती है, ताकि मोदी सरकार बदनाम हो।केंद्र सरकार ने अभी हाल में ही प्याज़ के निर्यात पर से प्रतिबंध हटा दिया है। किसान हित में यह एक अच्छा कदम है।
केंद्र सरकार के साथ किसान नेताओं की चौथे दौर की वार्ता भी असफल हो गयी है। अब इन किसान नेताओं ने घोषणा की है कि वे 21 फ़रवरी को दिल्ली कूच करेंगे।
इसलिए हमारा मानना है कि किसानों के नाम पर सिखों पर भड़काने वाले अलगाववादियों को सख़्ती से कुचलना चाहिए और “दिल्ली चलों” आंदोलन के नेताओं से भी अपील है कि उनके आंदोलन में अलगाववादी व चरमपंथी घुसे हुए है, इसलिए उन्हें आंदोलन ख़त्म कर देना चाहिए।

अशोक बालियान,चेयरमैन,पीजेंट वेलफ़ेयर एसोशिएसन

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