उत्तराखंड स्थापना दिवस
देवभूमि के देवताओं जाग जाओ
पार्थसारथि थपलियाल
देवभूमि, वीरभूमि, धर्मभूमि, कर्मभूमि, शक्तिभूमि, भक्तिभूमि, ज्ञानभूमि, दानभूमि, योगभूमि, तीर्थभूमि उत्तराखंड!
आज उत्तराखंड राज्य का 23वां स्थापना दिवस है। उन वीर कर्मपुरुषों एवं बहनों को नमन जिनके आंदोलन के फलस्वरूप यह राज्य अस्तित्व में आया। उन हुतात्माओं को विनम्र श्रद्धांजलि जिन्होंने राज्य निर्माण के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान किया। राज्य स्थापना दिवस पर उत्तराखंड सरकार और उत्तराखंड वासियों/प्रवासियों को बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं।
देवभूमि में देवताओं के जागरण के लिए जागर गीत गाए जाते हैं। जागरी गारुड़ी (प्रकांड) होता है तो वह स्थानीय देवता नागराजा, नरसिंह, भैरों, देवी आदि को नचा कर तृप्त कर प्रसन्न कर देता है और अगर अनाड़ी हुआ तो तीन दिन में भी कुछ नही होता। राज्य के संदर्भ में हम बातें करते हैं। बड़ी बड़ी बातें। भ्रष्ट्राचार का टोकरा किसी और के ऊपर डालने में माहिर हैं। नागरिक जैसे होंगे सरकारें वैसा करती हैं। राज्य के तीन घटक हैं-पहला सरकार व जनप्रतिनिधि, दूसरा तत्व है प्रशासन और तीसरा तत्व है नागरिक। विकास में भ्रष्टाचार का ठीकरा हम सरकार पर फोड़ते हैं। याद हैं वे दारू की बोतलें, जब गट गट उतर जाती थी गले को गीला करते हुए।
विगत 22 वर्षों में उत्तराखंड में काफी विकास हुआ, जो एक पिछड़े इलाके की सूरत बदलकर प्रगति पथ पर अग्रसर हो रहा है। देहरादून एक बड़ा एजुकेशन हब बन रहा है। ऊर्जा प्रदेश की उसकी छवि बरकरार है। सड़कें गाँव गाँव तक पहुंची हैं। ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल मार्ग कार्य प्रगति पर है। बहुत लोगों ने पर्यटन को रोजगार के रूप में अपनाया है। राज्य गठन के समय उत्तराखंड का वार्षिक बजट दो हज़ार करोड़ था जो वर्तमान वित्त वर्ष में लगभग 64 हज़ार करोड़ हो गया है। प्रतिव्यक्ति वार्षिक आय लगभग एक लाख छयानवे हज़ार हो गई। देवभूमि में चारधाम यात्रा सरल और सुखद होने से तीर्थाटन बहुत बढ़ा। वर्ष 2022 में लगभग 45 लाख यात्री चारधाम यात्रा के लिए आये। ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा व्यवस्थाएं बढ़ी हैं। राज्य सभा सांसद श्री अनिल बलूनी ने अपने प्रयासों से जो सुविधाएं उत्तराखंड के लिए उपलब्ध कराई हैं, वे सराहनीय हैं। वर्तमान धामी सरकार जो निर्णय लेने में अब तक कि सभी सरकारों में से सबसे आगे है, भ्रष्टाचार पर नकेल कस रही है। हाल ही में राज्य में उठे विभिन्न भर्ती घोटालों की निष्पक्ष जांच के जो कदम उन्होंने उठाये हैं, उससे सरकार पर लोगों का भरोसा बढ़ा है। यह बात ध्यान देने योग्य है कि 22 वर्षों में उत्तराखंड में 11 बार मुख्यमंत्रियों का शपथ ग्रहण हुआ। राजनीतिक अस्थिरता ने भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया और भाई भतीजावाद जम कर बढ़ा। इस अस्थिरता का सबसे अधिक लाभ यहां के नौकरशाहों और बाबुओं ने उठाया। बजट का 30 प्रतिशत भाग प्रशासनिक खर्चो पर चला जाता है। 30 प्रतिशत कमीशनखोरी में चला जाता है। अधिकतर जो लोग चुनाव जीतकर आते हैं वे अपना चुनाव खर्च और वैभव की कमाई कमीशन के माध्यम से लेते हैं, अन्यथा बाबू कई तरह की अड़चने पैदाकर फाइल रोक लेते हैं। अगर इस बात की पुष्टि करनी हो तो किसी को जमीन जायदाद की रजिस्ट्री करवानी हो तो रजिस्ट्री कार्यालय में जाकर अनुभव प्राप्त किया जा सकता है।
उत्तराखंड राज्य की लगभग 50 लाख जनसंख्या राज्य से बाहर निवास करती है। रोजगार और मानवीय सुविधाओं के अभाव में उत्तराखंड में अपने गांवों को छोड़कर मैदानी क्षेत्रों और शहरों में बस रहे हैं। उत्तराखंड में तीन हज़ार गांव जनविहीन हो चुके हैं। राज्य का पलायन आयोग क्या कर रहा है इसकी कोई उपलब्धियाँ कही दिखाई नही देती। राज्य में पर्वतीय जनसंख्या का तराई क्षेत्र में बसने से जनसांख्यिकी (Demography) पर जबरदस्त प्रभाव दिखाई देने लगा है। आने वाले समय में पर्वतीय क्षेत्र में जनसंख्या कम होने से विधानसभा में पर्वतीय जन प्रतिनिधित्व कम होगा। इसके कम होते ही नेतृत्व खिसक कर तराई के इलाके में चला जाएगा। यह होते ही उस भावना को ठेस पहुंचेगी जिसके लिए राज्य का निर्माण हुआ था। उत्तराखंड से जनसंख्या का पलायन भारत के लिए घातक सिद्ध होगा। सीमांत क्ष्रेत्र के वीरान होते ही चीन और नेपाल अतिक्रमण करने में चूक नही करेंगे। देवभूमि में बढ़ती मुस्लिम जनसंख्या को एक षड्यंत्र के रूप में देखा जा रहा है। उत्तराखंड राज्य बनने के बाद हरिद्वार, देहरादून और ऊधमसिंह नगर में अन्य राज्यों स मुस्लिम आकर बस गए हैं।
पर्वतीय क्षेत्र में जगह जगह मजारों का बनना और गांवों में इनकी पहुंच से कई प्रकार के अनाचार दुराचार की घटनाएं समय समय पर मीडिया में दिखाई देती हैं। क्या उत्तराखंड, देव भूमि और भारतीय संस्कृति की आस्था और रक्षा को बचाने का प्रयास कर सकता है?
उत्तराखंड में जनसंख्या पलायन के कारणों में से एक महत्वपूर्ण कारण है, पर्वतीय क्षेत्र में जंगली जानवरों का आतंक। आये दिन नरभक्षी बाघ, चीता, गुलदार घर के आस पास लोगों को अपना शिकार बना रहे हैं। लोगों ने पशुपालन छोड़ दिया, खेती किसानी छोड़ दी है, सुअर, बंदर, लगूर आदि न खेती होने देते न बागवानी। रही सही कसर मनरेगा ने पूरी कर दी, लोग मेहनती होने की बजाय आलसी हो रहे हैं। राज्य में स्थानीय रोजगार को बढ़ाने के विपुल संसाधन हैं। युवाओं को थोड़ी सी आर्थिक सहायता और थोड़ा ही मार्गदर्शन, इस राज्य को सम्पन्न राज्यों की श्रेणी में ला सकता है। देवभूमि के जन देवता यदि जाग जाएं, जागरूक हो जाएं। हम देवभूमि की संस्कृति के अनुरूप विकास का ढांचा स्थापित करें तो देवभूमि अपने नाम को सार्थक करेगी।