सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु में 7 वर्षीय बच्चे के अपहरण एवं हत्या के दोषी को सुनाई गई मौत की सजा को बदलकर मंगलवार को 20 साल कैद में तब्दील कर दिया. प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा की पीठ ने दोषी को बिना किसी छूट के 20 साल कैद की सजा सुनायी.

जानिए पीठ ने क्या कुछ कहा…

पीठ ने कहा, हमें अपहरण एवं हत्या में याचिकाकर्ता के दोष पर शक करने की कोई वजह नहीं दिखती. दोषसिद्धि में हस्तक्षेप करने के लिए समीक्षा के तहत अपनी शक्तियों को अमल में लाने की आवश्यकता नहीं है. हम मौत की सजा को 20 साल की उम्रकैद में तब्दील करते हैं.

कोर्ट ने कुड्डलोर के पुलिस प्रमुख को भी जारी किया नोटिस

सुप्रीम कोर्ट ने कुड्डलोर के पुलिस प्रमुख को भी नोटिस जारी किया. कोर्ट ने पूछा कि अदालत में दाखिल उस हलफनामे की अनुपालना में उन पर कार्रवाई क्यों न की जाए जिसमें याचिकाकर्ता के आचरण को छिपाया गया था. उसने पंजी को स्वत: संज्ञान लेते हुए अधिकारी के खिलाफ अवमानना का मामला दर्ज करने का निर्देश दिया. शीर्ष अदालत का यह फैसला 2013 के उसके फैसले के खिलाफ व्यक्ति द्वारा दायर पुनर्विचार याचिका पर आया है. कोर्ट ने 2013 में मौत की सजा बरकरार रखी थी.

मृत्युदंड क्या है?

मृत्युदंड किसी भी अपराध के लिए दी जाने वाली सजाओं में सबसे कठोरतम रूप है. इस सजा को मानवता के विरुद्ध ​नृशंसता और जघन्य अपराधों के लिए दिया जाता है. भारतीय संविधान के अनुच्छेद-72 के तहत राष्ट्रपति को दया याचिका भेजकर आजीवन कारावास या क्षमा में रूपांतरित किया जा सकता है. आईपीसी में कुछ अपराधों हत्या (धारा 302), डकैती (धारा 396), आपराधिक षड्यंत्र (धारा 120B), भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध करना या युद्ध करने का प्रयत्न करना या युद्ध करने का दुष्प्रेरण करना (धारा 121), विद्रोह का दुष्प्रेरण यदि उसके परिणामस्वरूप विद्रोह किया जाए (धारा 132) के लिए अपराधियों को मौत की सजा दी जा सकती है.

उम्रकैद क्या है?

जब किसी व्यक्ति को उम्रकैद की सजा होती है तो उसका मतलब यह होता है कि वह व्यक्ति जिंदगी भर जेल में रहेगा. कई मामलों में ऐसा देखने को भी मिलता है कि कई व्यक्ति जेल में उम्र कैद की सजा काट रहे थे, लेकिन उन्हें जेल प्रशासन ने से 14 से 20 सालों के अंदर ही जेल से रिहा कर दिया गया. ऐसा क्यों होता है? इसकी व्याख्या सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कई बार की है. दरअसल, राज्य सरकार के पास संविधान के दिए गए कुछ विशेष अधिकार हैं. जिनका इस्तेमाल किसी भी उम्रकैद की सजा काटने वाले कैदी की सजा को कम करवाने में किया जा सकता है. आईपीसी की धारा 55 एवं 57 में सरकारों को सजा को कम करने का अधिकार दिया गया है

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