उत्तरकाशी: Avalanche in Uttarkashi: पर्वतारोहण सबसे जोखिम भरा एडवेंचर है। उच्च हिमालयी क्षेत्र में मौसम की दुश्वारियों के साथ हर समय हादसे का अंदेशा रहता है।
12 वर्ष में दो बड़े हिमस्खलन से सामना
नेहरू पर्वतारोहण संस्थान में प्रशिक्षक के तौर पर तैनात सूबेदार अनिल कुमार का पिछले 12 वर्ष के अंतराल में दो बड़े हिमस्खलन (एवलांच) से सामना हो चुका है। अनिल कुमार कहते हैं, दोनों हादसों में उन्हें नया जीवन मिला है।
दल का नेतृत्व कर रहे थे नेतृत्व
इससे पहले गुलमर्ग में उन्होंने एवलांच का सामना किया है। मंगलवार को भी अनिल कुमार द्रौपदी का डांडा आरोहण अभियान दल का नेतृत्व कर रहे थे और हिमस्खलन की चपेट में आकर घायल भी हुए हैं।
अनिल सबसे आगे बांध रहे थे रस्सी
अनिल कुमार ने बताया कि मंगलवार को द्रौपदी का डांडा के आरोहण के लिए वह सबसे आगे रस्सी बांध रहे थे। उनके पीछे पूरा दल चल रहा था। प्रशिक्षक एवरेस्ट विजेता सविता कंसवाल और नवमी रावत प्रशिक्षुओं की लाइन के बीच में थी।
दल 50 मीटर गहरे क्रेवास में गिरे
हिमस्खलन की कोई उम्मीद नहीं थी, मौसम भी पूरी तरह साफ था। अचानक 100 मीटर लंबे हिस्से में हिमस्खलन हुआ और वो प्रशिक्षुओं के साथ 50 मीटर गहरे क्रेवास में समा गए।
बर्फ में फंसे प्रशिक्षुओं को निकाला
वह किसी तरह हिमस्खलन की जद में आने के दौरान किनारे की ओर छिटके तब जाकर उनकी जान बच सकी। फिर उन्होंने प्रशिक्षक राकेश राणा और दिगंबर के साथ मिलकर क्रेवास में उतरने के लिए रस्सी बांधी। फिर बर्फ में फंसे प्रशिक्षुओं को निकाला गया।
- प्रशिक्षक सविता कंसवाल और नवमी रावत को क्रेवास के अंदर से निकाला गया, लेकिन दोनों पहले ही दम तोड़ चुकी थीं।
2010 में भी हुआ था हिमस्खलन से सामना
अनिल कुमार कहते हैं कि वर्ष 2010 में वह जवाहर पर्वतारोहण संस्थान (जिम) गुलमर्ग में तैनात थे। करीब 250 प्रशिक्षुओं का दल था। यह दल हिमस्खलन की चपेट में आया, जिसमें 18 प्रशिक्षुओं की मौत हुई थी। लेकिन, द्रौपदी का डांडा में हुई हिमस्खलन की घटना बेहद बड़ी और दुर्भाग्यपूर्ण है।
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