गढ़वाल समाज समिति, वैशाली
उतरैणी/मकरैणी महोत्सव

वैशाली में कड़कड़ाती ठंड में सधे सुर, थिरके पांव

मकर संक्रांति 15 जनवरी को है। मकर संक्रांति के दिन से सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं। उत्तरायण को शुभ माना जाता है। उत्तराखंड में इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने, गुड़, दाल, तिल, कंबल आदि दान करने की भी परम्परा है। सुखी जीवन, उत्तम शिक्षा,अच्छी स्वास्थ्य सेवाओं की चाहत उत्तराखंड के लोगों को महानगरों की ओर खींच लायी है। दिल्ली एनसीआर (दिल्ली, नोएडा, फरीदाबाद, गाज़ियाबाद, मेरठ आदि शहर) में लगभग 40 लाख से अधिक लोग उत्तराखंड से आकर बस गए हैं। ये लोग उत्तराखंड की सांस्कृतिक यादें अपनी यादों में संजोए हुए हैं।


दिल्ली एनसीआर में इन दिनों उत्तरायणी/मकरैणी के उत्सव खूब मनाए जा रहे हैं। माघ संक्रांति (मौ मैना की संग्राद) को गढ़वाल में मकरैणी और कुमाऊँ में उतरैणी नाम से मनाते हैं। 13 जनवरी को राम वाटिका, सेक्टर 2, वैशाली, (गाज़ियाबाद) में “गढ़वाल समाज समिति” द्वारा उतरैणी/ मकरैणी, सांस्कृतिक महोत्सव आयोजित किया गया। गढ़वाल समाज समिति का गठन तीन माह पूर्व (अक्टूबर 2023 में) हुआ। समिति का यह पहला कार्यक्रम था, जो धम्मा-चौकडी मचा गया। दोपहर बाद आयोजित इस सांस्कृतिक महोत्सव- 2024 उत्तरैणी/मकरैणी (खिचड़ी संग्राद) का आयोजन किया गया। राम वाटिका का पूरा मैदान पारंपरिक मेले की तरह लग रहा था। सुर-ताल में गुंथी गायकी और लयबद्ध संगीत ने इस कार्यक्रम को महोत्सव जैसी ऊंचाइयां दी। इस महोत्सव में मुख्य अतिथि थे- गढ़वाली, कुमाउँनी एवं जौनसारी अकादमी (दिल्ली सरकार) के उपाध्यक्ष डॉ. कुलदीप भंडारी और विशिष्ठ अतिथि के रूप में आमंत्रित थे सुप्रसिद्ध रेडियो ब्रॉडकास्टर, लेखक एवं भारतीय संस्कृति के संयोजक पार्थसारथि थपलियाल। अतिथियों ने दीपक प्रज्ज्वलित कर समारोह का शुभारंभ किया। समिति ने परम्परा के अनुसार अतिथियों का स्वागत किया। विशिष्ठ अतिथि पार्थसारथि थपलियाल ने मकर सक्रांति के महत्त्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि सूर्य धनु राशि से मकर राशि मे आते ही उत्तरायण (उत्तरी गोलार्द्ध में जहां हमारा देश भी है) होता है। उत्तरायण होते ही मांगलिक कार्य शुरू हो जाते है। इस वर्ष मकर संक्रांति 15 जनवरी को है। सनातन संस्कृति में मकर संक्रांति को पर्व मानते हैं। इस पर्व पर पवित्र नदियों में स्नान, सूर्य उपासना और तिल व तिल से बने पदार्थ दान करने व खाने की परम्परा भी है। मकर संक्रांति को खिचड़ी संग्राद भी कहते हैं। इस दिन तिल की खिचड़ी बनाकर खाते भी हैं और दूसरों को भी खिलाते हैं। उन्होंने बताया कि चिकित्सकीय दृष्टि से इस ऋतु में घी, तिलों का तेल बहुत लाभदायक होता है। मुख्य अतिथि डॉ. कुलदीप भंडारी ने अपने संबोधन में “गढ़वाल समाज समिति” द्वारा आयोजित इस महोत्सव को अपनी पहाड़ी संस्कृति को संरक्षित और पल्लवित करने का उत्तम प्रयास बताया। उन्होंने कहा कि हम शहरों में रह रहे लोग अपने नई पीढ़ी के समाज को इस तरह की गतिविधियों से जोड़ें ताकि उत्तराखंड की संस्कृति का अनुकरण दूसरे लोग भी करें। डॉ भंडारी ने समिति के प्रयासों की सराहना की और अपनी शुभकामनाएं व्यक्त की। इस अवसर पर श्रो एम. एस. गुसाईं और श्रीमती बीना नेगी का स्वागत समिति के पदाधिकारियों ने किया। श्री गुसाईं ने बताया कि उंकि संस्था गढ़वाल में निर्धन परिवारों के छात्रों को सबल बनाने के लिए आर्थिक सहायता व प्रतिभावान छात्र-छात्राओं को सम्मानित करती है और आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों की बेटियों के विवाह में आर्थिक सहायता भी करती है।

महोत्सव में अच्छी बात यह थी कि इसमें तीन पीढ़ियों के दर्शक उपस्थित थे। पुरानी पीढ़ी शांत बैठी थी। उन्हें तालियों के लिए याद दिलाना पड़ता था। मध्य उम्र की महिलाओं के साथ नृत्य गीतों में ताल के साथ नाचने का आनंद नई पीढ़ी की बच्चियों ने खूब लिया। आमंत्रित कलाकार, दर्शकों के मन को भांप गए थे इसलिए उन्होंने वही गीत गाये जो सबके मन को भाए।
आमंत्रित श्री सौरभ मैठाणी और साथी कलाकारों ने अच्छा समा बांधा। सांस्कृतिक कार्यक्रमों का संचालन कई टी. वी. धारावाहिकों में काम कर चुकी कलाकर मंजू बहुगुणा ने मौके के शे’रों के साथ सधे अंदाज़ में की। आरम्भ में कलाकार सौरभ मैठाणी ने न्यतेर माँगल गीत- बोल कागा चौदिसा सगुन… से की। एक देवी भजन- तू रैंदी तू रैंदी ऊँचा पहाड़ों म.. गाया तो दर्शक उनके साथ झूमने लगे। सोनिया मनराल ने सुरीले अंदाज़ में-पहाड़ा ठंडू पाणी… और चिठ्ठी मा लिखी द्यूलु… गाये। इन गीतों पर उन्हें खूब तालियां मिली। सुधांशु लखेड़ा ने अपने पहले दौर में- भाना ए रंगीली भाना.. गाया। दर्शक उनके साथ जुड़े दूसरे गाने पर। मस्त बोल थे- घूर घुरान्दी घुघुती … सौरभ मैठाणी के गीत-मेरी प्यारी चल दिल्ली… निजाणु निजाणु मेरी बौ सरेला.. पर लोग खूब थिरके।
मौसम में शाम की ठंडक अपना असर दिखा रही थी दूसरी ओर मंचस्थ कलाकारों और दर्शकों में माहौल को गरम बनाये रखने की होड़ लगी हुई थी। अमित कोली अगले कलाकार थे जिनके ऊपर मशाल आगे बढ़ाने का दायित्व आया उसे उन्होंने बखूबी निभाया। यह कार्यक्रम रात 8 बजे तक चलता रहा। कार्यक्रम के मध्य श्री सच्चिदानंद शर्मा पोखरियाल, पूर्व दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री उत्तराखंड सरकार व उनके साथियों का भी अभिनंदन किया गया।
गढ़वाल समाज समिति, वैशाली के संरक्षक श्री राम स्वरूप खंतवाल, व श्री गुणानंद खनसीली, अध्यक्ष श्री बृजपाल सिंह रावत, महासचिव श्री बृजमोहन सिंह नेगी, वरिष्ठ सचिव श्री ललित थपलियाल, सचिव श्री हिमांशु लखेड़ा कोषाध्यक्ष श्री विनोद बडोला व अन्य सदस्यों ने कार्यक्रम को सफलता की बुलंदियों तक पहुंचाने का काम अपने अनुभवों के साथ किया। कार्यक्रम का संचालन श्री ललित थपलियाल और दिनेश लखेड़ा ने किया। तिथियों का धन्यवाद ज्ञापित किया समिति के अध्यक्ष श्री बृजपाल सिंह रावत ने। महोत्सव के आरंभ में स्वस्तिवाचन प्रस्तुत किया ललित थपलियाल, आशीष ममगाईं, और डॉ देवाशीष थपलियाल ने।
(Reported by Parthsarathi Thapliyal, 14th Jan.2024)

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