ये देश दरअसल मुद्दों से भागता असलियत से छिपता हुआ देश है. होता रहा होगा कभी भारत की बौद्धिक जमात जनमानस के विषयों को वैश्विक परिदृश्य तक ले जाती थी. जगत गुरु फलाने, जगत गुरु ढिमकाने की ग्लोबल मार्केटिंग के बीच हम स्थानीय मुद्दों और मसाइल के आगे हारते रहे हैं. कोई धर्माचार्य अपने मठ के दरवाजे तक दम तोड़ गया तो कोई सियासी शख़्सियत अपने गांव की पंचायत में अपने हुनर के लिटमस टेस्ट में फेल हो गई.
तथ्यों की रौशनी में एक उदाहरण देता हूं. क़िताबों की बात नहीं करता. इतिहास के पन्ने नहीं पलटता. बस मौजूदा दौर के ज़बरदस्ती के लादे गए महानायक की ज़मीनी सच्चाई से आपको फिर रूबरू करता हूं. नरेंद्र दामोदर दास मोदी. हिंदुस्तान के सबसे ताक़तवर आदमी. प्रधान मंत्री भारत सरकार हैं, सब लोग वाकिफ़ भी हैं. उनकी मार्केटिंग टीम ने उनको वैश्विक नेता बताया, बना नहीं सकते नहीं तो बना भी देते. तो कहानियां गढ़ी जाने लगीं. चारण भांटो की समृद्ध परंपरा को हमको भूलना नहीं चाहिए और चारण भांट फिर एक बार शुरू हो गए. नैरेटिव गढ़ा जाने लगा कि आज़ादी के बाद पहला ऐसा नेता, ऐसा प्रधानमंत्री देश को मिला, जो पूरी दुनिया के नेताओं को गवर्न कर रहा है. वो दुनिया के हर ताक़तवर देश के ताक़तवर मुखिया को नाम से बुलाता है. उसके नाम से तमाम देशों की आला सियासी शख़्सियतें पैनी निगाहें चौकन्ने कान हो जाती हैं.
लेकिन हासिल की ज़मीन देखें तो वो जो थोड़ी बहुत उपजाऊ थी, बंजर हो गई. नेपाल जैसा मित्र राष्ट्र, जहां किसी हिंदुस्तानी को पासपोर्ट की ज़रूरत नहीं होती, जहां के लोग हमारे यहां पठन पाठन से लेकर रोज़गार की हर संभव सीमा तक जुड़े हुए हैं, आंख दिखा गया. हर छोटे बड़े शहर में रहने वाले आम शहरी ने अपने मुहल्ले में, अपनी गली में, अपने शहर में जी शाब!सलाम शाब! कहके सलाम ठोंकने वाले नेपाली चौकीदारों को देखा होगा. जगत गुरुओं की लंबी श्रृंखला के बाद नरेंद्र मोदी नामधारी जगत नेता आया और मित्र राष्ट्र, हमसे उपकृत राष्ट्र, विश्व के पूर्व इकलौते हिन्दू राष्ट्र ने हमारे सैनिकों पर गोली चला दी. एक भी पड़ोसी राष्ट्र से हमारे अच्छे संबंध नहीं हैं. कोई हमको भरोसे और सम्मान की नज़र से नहीं देखता, दुनिया की तो बात ही छोड़िए.
ख़ैर मैं अपनी उस बात पर लौटता हूं कि हम हिन्दुस्तानी मुद्दों और मसाइल से आंखें छिपाने वाले लोग हैं. कभी हम प्रधानमंत्री मोदी के परिधान की बात करते हैं तो कभी हम राहुल गांधी के पहनावे पर दम तोड़ जाते हैं. आठ साल के प्रधानमंत्री मोदी से शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार पर सवाल नहीं पूछा जाता. ये और बात है कि मोदी & कंपनी ने सवालों के जवाब का रास्ता बंद भी कर रखा है. लेकिन सवाल तो दमदारी से और हर सक्षम मंचों पर उठने चाहिए. हिंदुस्तान की सियासत में ये अजूबा पहली बार हो रहा है कि सवाल विपक्ष से होते हैं, जवाबदेही विपक्ष की तय की जाती है और ज़िम्मेदारी विपक्ष की ही है. विपक्ष के एक नेता हैं राहुल गांधी. जैसे मोदी ओवरेटेड नेता हैं, उसी तरह राहुल अंडररेटेड नेता है.
लगभग तीन हजार किमी की पदयात्रा कर दिल्ली पहुंचे राहुल गांधी की यात्रा विमर्श में नहीं है. इस देश का वैचारिक और सूचना तंत्र इस बात की बहस में लगा है कि इतनी ठंड है और राहुल गांधी एक हॉफ टी शर्ट में कैसे चल रहे हैं. मुझे याद आ रहा है कि जब राहुल गांधी ने अपनी भारत जोड़ो पद यात्रा शुरू की थी तब भी टी शर्ट ही विमर्श में थी. सत्ताधीशों ने ये हवाबाजी शुरू की कि राहुल गांधी ने जो टी शर्ट पहनी है, वो एक महंगी टी शर्ट है. ऐसी मंहगी टी शर्ट जो एक रईस पहन सकता है, आम हिंदुस्तानी नहीं. मुझे ऐसा कहने और लिखने की ज़रूरत इसलिए पड़ रही है क्योंकि मौजूदा भारतीय राजनीति के ज़िंदा हिस्से में राहुल गांधी अकेली सियासी शख़्सियत हैं, जिन्होंने इतनी लंबी पदयात्रा की और आगे करने वाले हैं. अफ़सोस होता है कि हम एक विचारशील, बौद्धिक संपदा से लबरेज़ देश हैं और आज हम बात क्या कर रहे हैं.
मरने की कगार पे हैं सारे मुद्दे मसले मसाइल
यूं कहने को हिंदुस्तान रौशनी अता करता रहा
■डॉ. अम्बरीष राय✍️