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दो विभिन्न मान्यताओं के अनुसार चन्द्रोदय अथवा अरूणोदय व्यापिनी कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के दिन नरक चतुर्दशी मनाई जाती हैं इस वर्ष शनिवार 11 नवम्बर ई. के दिन चन्द्रोदय एवं (पूर्व) अरूणोदय व्यापिनी (चंन्द्रोदय के समय चतुर्दशी होना) चतुर्दशी होने के कारण 11 नवम्बर के दिन यह पर्व मनाया जायेगा।

इस वर्ष चतुर्दशी तिथि 11 नवम्बर दिन 01 बजकर 57 मिनट से 12 नवम्बर के दिन 02 बजकर 45 मिनट तक रहेगी काली पूजन तथा अन्य तांत्रिक साधना रात्रिकाल मे होने के कारण इस वर्ष काली चौदस 11 नवम्बर शनिवार के दिन मनाई जायेगी।

दीपावली से एक दिन पहले मनाई जाने वाली नरक चतुर्दशी के दिन संध्या के पश्चात 14 दीपक प्रज्जवलित करने के कार्य भी 11 नवम्बर को ही किए जायेंगे।

काली चौदस की रात्रि में कोई भी मन्त्र मंत्रजप करने से मंत्र शीघ्र सिद्ध होता है। इस रात्रि में सरसों के तेल अथवा घी के दिये से काजल बनाना चाहिए। इस काजल को आँखों में आँजने से किसी की बुरी नजर नहीं लगती तथा आँखों का तेज बढ़ता है।

नरक (रूप) चतुर्दशी
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ज्योतिषीय ग्रंथो के मतानुसार चतुर्दशी तिथि के दिन सूर्योदय से पहले अभ्यंग स्नान (तिल का तेल का उबटन लगाकर अपामार्ग का प्रोक्षण कर) स्नान करने की पौराणिक परंपरा के कारण उदयकालीन चतुर्दशी तिथि मे रूप चतुर्दशी का पर्व मनाना ही सर्वमान्य है इस वर्ष उदय कालीन चतुर्दशी तिथि दीपावली के दिन 12 नवम्बर को पड़ रही है अतः नरक (रूप) चतुर्दशी के अभ्यंग स्नान आदि कार्य 12 नवम्बर की प्रातः सूर्योदय से पहले करना ही श्रेष्ठ रहेगा।

नरक (रूप) चतुर्दशी पूजा सम्बंधित विस्तृत वर्णन अगले लेख के माध्यम से किया जायेगा।

आचार्य डॉ0 विजय शंकर मिश्र:!
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