फिनलैंड (Finland)  मंगलवार ( 4 अप्रैल) को नाटो (NATO) का 31 वां सदस्य बन गया है. इसे रूस के खिलाफ अमेरिका के  तरफ से किए गए ऐतिहासिक राजनीतिक बदलाव की तरह देखा जा रहा है. आपको बता दे कि फिनलैंड रूस (Russia) का पड़ोसी मुल्क है. फिनलैंड रूस के साथ 1300 किलोमीटर की सीमा साझा करता है.

फिनलैंड के नाटो से जुड़ जाने के बाद अमेरिका के नेतृत्व वाले गठबंधन की ताकत दोगुनी हो जाएगी. पिछले हफ्ते नाटो के सहयोगी देश तुर्किए (Turkey) और हंगरी (Hungry) ने फिनलैंड को नाटो में शामिल होने के लिए मतदान किया था. ये प्रक्रिया एक साल के अंदर पूरी हो गई, जो हाल के इतिहास में सबसे कम समय में सबसे तेज़ सदस्यता प्रक्रिया मानी जा रही है.

मेंबरशिप से जुड़ी बाकी की औपचारिकताएं पूरी करेंगे

नाटो के सेक्रेटरी जनरल जेन्स स्टोलटेनबर्ग ने फिनलैंड के नाटो से जुड़ने पर कहा कि यह वास्तव में एक ऐतिहासिक दिन है. यह गठबंधन के लिए एक महान दिन है. वहीं फिनलैंड के राष्ट्रपति साउली निनिस्टो आज ब्रसेल्स जाएंगे और नाटो की मेंबरशिप से जुड़ी बाकी की औपचारिकताएं पूरी करेंगे. इसी दौरान फिनलैंड के विदेश मंत्री नाटो की संस्थापक संधि के रक्षक, अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन को औपचारिक परिग्रहण पत्र सौंपेंगे.

वहीं ब्रसेल्स में नाटो मुख्यालय  के सामने अपने नए सहयोगियों के बगल में देश का नीला और सफेद झंडा फहराएंगे.

फिनलैंड रूस के हमले से डर गया था

रूस के तरफ से यूक्रेन पर किए गए हमले के वजह से फिनलैंड डर गया था. दरअसल, यूक्रेन नाटो देश का सदस्य नहीं है. इस वजह से नाटो ने यूक्रेन की मदद नहीं कर पाई. इसको देखते हुए फिनलैंड ने नाटो समूह में शामिल होने का फैसला लिया. उन्हें डर था कि कही रूस हम पर आगे भविष्य में हमला न कर दे.

इस पर नाटो के सेक्रेटरी जनरल जेन्स स्टोलटेनबर्ग ने कहा कि रूसी राष्ट्रपति पुतिन यूक्रेन पर हमला करके नाटो को कम करने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन फिनलैंड के जुड़ जाने से उनका फैसला उल्टा पड़ गया. दूसरी ओर स्वीडन भी लगातार नाटो में जुड़ने की कोशिश कर रहा है, लेकिन तुर्किए के हस्तक्षेप की वजह से ऐसा संभव नहीं हो सका है.

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