पूर्व में भी भाजपा से गठबंधन रालोद के लिए हुआ था फायदेमंद सौदा साबित
प्रशांत त्यागी, देवबंद
लोकसभा चुनाव में अभी दो माह का समय बाकी है लेकिन जिस प्रकार से पश्चिम उत्तर प्रदेश की सियासत में फिर से करवट बदलना शुरू की है वैसे ही राजनीतिक दलों के माथे पर चिंता की लकीरें किसकी नजर आ रही है। उत्तर प्रदेश में अगर भाजपा और रालोद के बीच गठबंधन होता है तो पश्चिम उत्तर प्रदेश की कई लोकसभा सीट इस गठबंधन से अछूती नहीं बचेगी।
भाजपा और रालोद के बीच गठबंधन की खबरें जिस तरीके से हवा में तैर रही है यह विपक्ष के लिए शुभ संकेत नहीं है। क्योंकि पश्चिम उत्तर प्रदेश की सियासत में 22 फ़ीसदी वोट बैंक जाट समाज का आता है। जो ज्यादातर परंपरागत वोट रालोद के पक्ष में ही करता है। अगर रालोद भाजपा गठबंधन पर मोहर लगती है तो वास्तव में सपा बसपा समेत अन्य विपक्षी दल के लिए यह एक बड़ा अशुभ संकेत होगा। क्योंकि सपा कांग्रेस गठबंधन रालोद के सहारे ही पश्चिमी यूपी में भाजपा को घेरने की तैयारी में था, लेकिन भाजपा ने अपना सियासी बार चलते हुए केंद्र में कांग्रेस और उत्तर प्रदेश में सपा के लिए एक बड़ी चुनौती साबित कर दी है। क्योंकि भाजपा जहां ठाकुर ब्राह्मण, त्यागी भूमिहार, गुर्जर,सैनी समेत अन्य पिछड़े वर्ग के सहारे मजबूत स्थिति में अपने आप को मन कर चल रही थी वहीं अगर दोनों ही पार्टियों का वोट एक दूसरे को ट्रांसफर होता है तो यह गठबंधन पश्चिम उत्तर प्रदेश के सारे सियासी समीकरण बदलकर रख देगा। अगर स्पीच सपा और बसपा के बीच गठबंधन होता है तो देखा जाए तो कुछ सीटों पर फाइट हो सकती है, लेकिन बसपा सुप्रीमो मायावती अभी किसी भी राजनीतिक दल से गठबंधन के लिए तैयार नहीं है। सूत्रों की माने तो जिस प्रकार से भाजपा के वरिष्ठ नेता और रालोद के बड़े नेताओं के बीच गठबंधन को लेकर राजनीतिक जमीन मजबूत करने की तैयारी की जा रही है उसके पीछे पश्चिमी यूपी में सपा और कांग्रेस के वजूद को समाप्त करने की एक बड़ी राजनीतिक रणनीति है। क्योंकि पश्चिम उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के पास ना तो कुछ खोने को हो ना ही अपने को सांप कहा जाए तो कांग्रेस का कोई परंपरागत वोट बैंक भी नहीं है। दूसरी और सपा के पास मुस्लिम वोट बैंक के अलावा दूसरा जाति का कोई परंपरागत वोट बैंक नहीं है। जिसके चलते अगर मुस्लिम वोट बसपा के बारे में खिसक गए तो कहीं ना कहीं इस राजनीतिक लड़ाई का लाभ सपा कांग्रेस को जहां नुकसान के रूप में होगा तो वहीं भाजपा और बसपा को इसका सीधा लाभ पहुंच सकता है। अब यह तो भविष्य के गर्त में है कि राजनीतिक ऊंट किस करवट बैठता है लेकिन वर्तमान में जिस प्रकार से रालोद और भाजपा के बीच सियासी गठबंधन की बात सामने आ रही है इससे विपक्ष के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है।
पीडीए गठबंधन में फूट की यह बनी वजह
सियासी पंडितों की माने तो कांग्रेस से सपा गठबंधन रालोद को पश्चिमी यूपी में 7 सीट देने के लिए तैयार था जिनमें मुजफ्फरनगर, कैराना समेत तीन सीटों पर सपा के नेता रालोद के सिंबल पर लड़ते। इसी बात पर पेंच फंसा और रालोद के बड़े नेताओं ने इस गठबंधन का अंदरुनी विरोध शुरू कर दिया। रालोद के बड़े नेता पार्टी के ही नेताओं को सभी सिंबल पर चुनाव लड़ने के इच्छुक थे। लेकिन सपा तीन सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारने की जिद पर अडी रही। जिसके चलते दोनों राजनीतिक दल एक दूसरे से जुदा होते चले गए।
इन सीटों पर पहुंचेगा सीधा लाभ
उत्तर प्रदेश में अगर भाजपा और रालोद के बीच गठबंधन होता है तो पश्चिम उत्तर प्रदेश की मुजफ्फरनगर, कैराना, बागपत, मेरठ, मथुरा, गाजियाबाद, नोएडा, सहारनपुर, आगरा समेत पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 15 से 16 सीटों पर सीधा प्रभाव पड़ेगा क्योंकि इन ज्यादातर सीटों पर रालोद का अच्छा खासा प्रभाव माना जाता है।
प्रशांत त्यागी
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