Home कविता/शायरी “बाबा” “बाबा” By राजसत्ता पोस्ट - March 4, 2021 बस वही एक चेहरा है जाना पहचाना सा जो मेरी उम्र के साथ बदलता गया शदाबी से झुर्रियों तक पर मेरे लिए मुहब्बतों के रंग कभी मुर्झा न सके उस चेहरे से मेरे बाबा मेरे मुर्शिद भीं हैं और पीर भी सिम्मी हसन बेल्थरा रोड, बलिया यूपी