जो जन के जीवन को नई दिशा संतुष्टि प्रसन्नता और सही गलत का भेद बताने के लिए, हर सदी में प्राणवायु बनकर मौजूद रहा है. वेदों, ग्रंथों, उपन्यासों, काव्य के संकलनों नें सदियों से उस समय की प्रासंगिकताओं को घटनाओं को शब्दों के माध्यम से जीवित बनाया है. जो इतिहास के रूप में आज भी हमारे बीच पूर्वजों की भांति जीवित है. साहित्य भी अपनी इसी धरोहर को वंशागत सक्रिय उत्प्रेरक की भांति अपनी अहमियत के साथ हमारे अनुवांशिक घटकों और संवेदना को विरासत के तौर पर आगे ले जा रहा है.
अब यह उस लेखक या कवि पर निर्भर करता है कि वह अपने संप्रेषण को तुष्टीकरण के लिए उपयोग करता है या विरासत में जाने वाली सत्वगुण की तरह.
अच्छा साहित्य सात्विक भोजन की तरह होता है वह आपकी पाचन इंद्रियों को हानि नहीं पहुंचाता अपितु आप को पौष्टिक तत्व प्रदान करता है आप जिसे बढ़कर क्रमशः और सुधार की ओर अग्रसर होते जाते हैं. ऐसा साहित्य आप को आत्मनिर्भर बनाता है कभी-कभी हमें कोई विषय वस्तु बहुत कठिन या कड़वी प्रतीत होती है. हम उसे अधूरा पढ़ कर छोड़ देते हैं, आगे पढ़ने की चेष्टा ही नहीं करते. तब हम सहजता से स्वीकार नहीं कर पाते की हमें कोई कमी है अथवा लगन की अल्पता है. बाहर से हम उस विषय वस्तु को अरुचिकर कहकर पल्ला झाड़ लेते हैं. किंतु वह विषय हमारी समझ का एक कोना अविकसित ही रहने देता है.
दो बातें हैं या तो स्वीकार करें कि समझ विकसित नहीं है या प्रयास कर पूर्ण मन से कि हमें समझना है. साहित्य की दिशा आपका अंदर से उपचार करती है, यदि हम आत्मसात करें तब.
सही मायने में यही साहित्य के प्रति हमारी सच्ची निष्ठा का समर्पण होगा.
प्रतिभा त्रिपाठी
(लेखिका/कवयित्री)