Category: कविता/शायरी

माँ

माँ के’ आशीष में’ सच मानिए’ इतना दम है। कि उसके’ सामने लाचार दीखता यम है। माँ के’ आँचल की’ छाँव बरगदों पे’ है भारी, जिसको’ सूरज भी’ मानता है’…

गजल

रूह पहने इक बदन से मर रहे हैं हर्फ़ जो मेरे सुख़न से मर रहे हैं कोई ख़्वाहिश दिल में जल कर मर गई है और हम उसकी जलन से…

“बेटियाँ”

हर दिन सुबह की पहली किरन के साथ लाज़मी हैं कि जागें ये जुगनू सी चमकती आँखे मुस्कुराते होंटो से कितनी तितलियाँ बिखेरतीं किलकारियों में गूँजती कितनी बाँसुरियों की आवाज़ें…

“जज़्बातों की पहरेदारी”

जज़्बातों की पहरेदारी ये अखियाँ नहीं मानतीं। छलक उठतीं हैं जब-तब…सुख-दुख में फर्क नहीं पहचानतीं।। पर मन कायल होता है इन जज़्बातों का। भीग जाता है इनकी बिन-मौसम बरसात में।।…

धुंध

जब आच्छादित हो झीना दुशाला फिर मार्ग प्रशस्त नहीं हो पाता, बाधित करे दृष्टि, ऐसे आंचल को ओढ़ हृदय अकुलाता। असमंजस में पग आगे बढ़ते कभी भयातुर हिय ठिठक जाता,…

“संतुलन”

एक ही पैर पर थिरकती झुक कर, कुछ तिरछी हो नृत्य की विभिन्न भंगिमाओं को निरंतर साधती अवनी, निशा दिवस की सखी बनी खेलती रहती है संग उनके, करती गलबहियां,…

स्त्री स्वयं में ब्रह्मांड लिए चलती है!”

यूं ही नहीं मान्यता है बिंदी की, स्त्री में छुपे भद्रकाली के रूप को शांत करती है । यूं ही नहीं लगाती काजल, नकारात्मकता निषेध हो जाती है जिस आंगन…