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कविता-शायरी
“सूद”
मन उदास है
क्या सब समेट लूँ??
और कितने अँधेरे???
कुछ भी नहीं मिलता
मन के इस कमरे में
अँधेरों के सिवा
कितने बक्से..
कितनी पेटियाँ..
सब की सब भरी पड़ी हैं
नाकामियों, महरुमियों से
जिसे तुम सब्र कहते हो
लगता है
एक ग़रीब की मजबूरी है…
“गाँधी”
गांधी व्यथित थे
बेचैन
मन में उमड़ रहीं थीं
कितनी कितनी भावनाएँ
सब ने बेकल कर दिया था उन्हें
थक गए थे
देखते देखते
बरसो पहले जिस
अस्पृश्यता के लिए
उन्होंने हरिजन नाम सुझाया
आज उसी पर
हो रही थी राजनीति
हिन्दू हिन्दू था,
मुस्लिम…
मोह माया ज्ञान
आयेंगे कभी-कभी जिंदगी में!
आशा न देखना अभी की अभी!
ये हृदय है कमलनेत्री की मधुर बोल की ,
यूँ ही व्यर्थ में बुलाने की जिद्द ना करना ऐ सखे!
होते अगर साथ यहाँ सुनसान परिस्थितियों में,
चिंता न होती कभी भी मूलाकात के लिए ऐ आजाद पंछी!
तनिक…
भटकाव जिंदगी
चलना तो जाना नहीं,
रास्ते भी अनेक हैं,
कौन किधर ले जाएगा ?
ये भी मालूम नहीं होता है;
राही हूँ एक पथ का भटकाव तो चाहिए नहीं;
आकर ही क्या करेंगे क्या भरेंगे दिल में मेरे अपनी जुबान से?
होते अगर साथ यहाँ सुनसान कुटिया में रहनेवाले,…
यक्षिणी नाटक के साथ सम्पन्न हुआ संगीत नाटक अकादेमी का प्रदर्शन कला उत्सव
संगीत नाटक अकादेमी रत्न सदस्यता और पुरस्कार (2018) द्वारा सम्मानित कलाकारों का संगीत, नृत्य और नाट्य प्रस्तुति उत्सव का ग्यारहवां दिन संजय उपाध्याय द्वारा निर्देशित, विनय कुमार की कविता पर आधारित हिंदी नाटक "यक्षिणी" के साथ सम्पन्न हुआ। रोज…
आसान नहीं होता प्रतिभाशाली स्त्री से प्रेम करना
आसान नहीं होता प्रतिभाशाली स्त्री से प्रेम करना,
क्योंकि उसे पसंद नहीं होती जी हुजूरी,
झुकती नहीं वो कभी
जब तक न हो
रिश्तों में प्रेम की भावना।
तुम्हारी हर हाँ में हाँ और न में न कहना वो नहीं जानती,
क्योंकि उसने सीखा ही नहीं झूठ की…
मेरे आंगन की बुलबुल
मेरे आंगन में फुदकती बुलबुल, पूछती है अक्सर , की क्यों मैंने सूखे पेड़ों की डालियों को बना रखा है, अपना हमसफर- राजदार । मेरे आंगन की बुलबुल को, सूखे पेड़ों से मेरी दोस्ती अच्छी नहीं लगती, वह चाहती है बनना राजदार- दोस्त मेरी, पर, वह नहीं समझ…
एक हकीकत
पानी रे पानी ! तू है किस रंग का पानी?
कभी तुम मधुर लगते हो!
कभी तुम खारे लगते हो !
कभी किसी के मुखमंडल की शोभा बढ़ाते हो !
कभी तुम आनंद के अश्रुधारा में रहते हो !
कभी तुम दर्द भरी आहों में आँखों से आँसुएँ बन आते हो
कभी तुम बारिश बन…
ये बालों की सफेदी
ये बालों की सफेदी
देखता कौन है
सिर्फ माथे की बिंदी देख
आज भी मरते हैं तुम पे
चलो ना कुछ बात करे
वो कमर की सिलवटे
देखता कौन हैं तुम्हारी
नाभी पे सारी बांधना तुम्हारा
आज भी लुभाता हैं
चलो ना कुछ बात करें
छोड़ो फिक्र अब बढ़ते वजन…
चंचल तृष्णा
भया न अंधेरा जीवन में कभी ,
ज्यों ही तुम्हारे आगमन हुए इस घर में,
लाल कहूँ कि लाड़ले ये समझ में न आये,
ज्यों ज्यों रूनरझुनर पायलों की आवाज़ होती हैं तेरी,
लगता नहीं इस पृथ्वी पर कहीं प्रेम कभी था छिपा,
होती है हंसी जब मधुर होठों से…