बंगलादेश पर शिवसेना (उद्बव गुट) के सांसद संजय राउत का ब्यान आपत्तिजनक है-अशोक बालियान, पीजेंट वेलफेयर एसोसिएशन
शिवसेना (उद्बव गुट) के सांसद संजय राउत का कहना है कि शेख हसीना प्रधानमंत्री के रूप में नाकाम थीं और बांग्लादेश में तानाशाही चल रही थी, जैसे भारत में है। क्या संजय राउत भारत में भी बांग्लादेश जैसी स्थिति चाह रहे है?
शिवसेना (उद्वव गुट) सांसद संजय राउत को पहले बंगलादेश का पूरा इतिहास पढना चाहिए था।बंगलादेश पर शिवसेना (उद्बव गुट) के सांसद संजय राउत का ब्यान आपत्तिजनक है।
अगर संजय राउत की बात मानें तो, जनवरी 2024 में ही बांग्लादेश में चुनाव हुए थे, जिसमे शेख हसीना ने एकतरफा जीत दर्ज की थी।अगर वहां की जनता नहीं चाहती तो, क्या शेख हसीना जीत सकती थी? इतनी तानाशाही थी, तो उसी समय जनता सड़कों पर उतर जाती और चुनाव ही ना होने देती।
संजय राउत
दरअसल, आंदोलन में प्रमुख मुद्दा था, आरक्षण का, जो सन 1971 में बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में जान गंवाने वाले लोगों के परिजनों को दिया जा रहा था।विवाद के बाद शेख हसीना ने फैसला वापस भी ले लिया था, लेकिन कट्टरपंथी ताकतों को मुद्दा मिल चुका था। प्रतिबंधित आतंकी संगठन ‘जमात ए इस्लामी’ ने आंदोलन को हाईजैक कर लिया था और स्थिति बेकाबू हो गई थी। इस संगठन को शेख हसीना ने कुछ दिनों पहले ही प्रतिबंधित किया था, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने भी सही माना था, क्योंकि ‘जमात ए इस्लामी’ की गतिविधियां कट्टरपंथी थीं। अब अगर, संजय राउत, शेख हसीना को तानाशाह कह रहे हैं, केवल ये दिखाने के लिए कि वे भारत सरकार पर निशाना साध सकें, तो वे भारत की सुरक्षा को नज़रअंदाज़ कर रहे हैं।
बांग्लादेश में आखिरकार कट्टरपंथी पार्टी ‘जमात-ए-इस्लामी’ अपने मंसूबों में कामयाब रही है। बांग्लादेश में विरोध प्रदर्शन, तोड़फोड़ और सेना के रवैये के बाद शेख हसीना को देश से भागने के लिए मजबूर होना पड़ा है। ‘जमात-ए-इस्लामी’ बांग्लादेश की एक कट्टरपंथी पार्टी है, जिस पर कुछ दिनों पहले शेख हसीना सरकार ने बैन लगा दिया था।
बांग्लादेश में 15 वर्षों तक शासन करने के बाद, देश के संस्थापक शेख मुजीबुर रहमान की बेटी शेख हसीना को इस्तीफा देने और देश से भागने के लिए मजबूर होना पड़ा है। वही शेख मुजीबुर रहमान, जिनको परिवार के 17 लोगों सहित सेना में कट्टरपंथी गुट द्वारा मार दिया गया था।
सन 1981 में शेख हसीना जर्मन से बांग्लादेश पहुंचकर लोकतंत्र की आवाज़ बनीं।सेना द्वारा शासित देश में उन्हें लंबे समय तक नज़रबंद रखा गया। सन 1996 लोकतांत्रिक तरीके से जीत दर्ज कर उन्होंने पहली बार अपनी सरकार बनाई थी, लेकिन सन 2001 में उन्हें सत्ता से बाहर कर दिया गया था।
सन 2008 के चुनाव में वह प्रचंड जीत के साथ फिर सत्ता में लौट आईं थी।और तब से लगातार बांग्लादेश पर शासन कर रहीं थीं। उनके कार्यकाल में बांग्लादेश, पाकिस्तान से बेहतर तरक्की कर रहा था।लेकिन, शायद कट्टरपंथियों को ये पसंद नहीं आया था, शेख हसीना अपने देश के अल्पसंख्यकों के प्रति नरम रुख रखतीं थीं, भारत के साथ मधुर संबंध रखती थी।ये पाकिस्तान, चीन के साथ ही बांग्लादेश के कट्टरपंथी संगठन जमात ए इस्लामी को भी गवारा नहीं था।
बांग्लादेश एक बार फिर उबल रहा है। सन 1971 के मुक्ति संग्राम के बाद से देश ने इतना खून खराबा कभी नहीं देखा, जितना पिछले कुछ महीनों से हो रहा है। दिनांक 05 अगस्त 2024 को शेख हसीना ने कथित तौर पर बांग्लादेश की सेना प्रमुख वेकर-उज़-ज़मान की सलाह पर प्रधान मंत्री इस्तीफा दे दिया था और उसी दिन देश छोड़ कर फ़िलहाल भारत में अस्थाई शरण ली है।
बांग्लादेश में शेख हसीना की सत्ता का जाना विपक्षी नेता खालिदा जिया के लिए किसी गोल्डन चांस से कम नहीं है।किसी ने सोचा भी नहीं था कि 17 साल की सजा काट रहीं पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया कुछ ही सालों में कैद से रिहा भी हो सकती हैं। बांग्लादेश के राष्ट्रपति मोहम्मद शहाबुद्दीन ने शेख हसीना के पीएम पद से इस्तीफा देते ही उनकी रिहाई के आदेश दे दिए थे।
बांग्लादेश से शेख हसीना के भागने के बाद हिंदुओं पर अत्याचार की खबरें आ रही हैं।बांग्लादेश के कुल 64 जिले में से 21 जिलों में हिंदू आबादी है। यहां कई बार दंगे हुए और हिंदुओं पर अत्याचार करने के साथ ही उनके मंदिर तोड़े जाते रहे है। सन 1951 में, बांग्लादेश की आबादी में हिंदुओं की हिस्सेदारी 22 प्रतिशत थी जो, अब घटकर मात्र 8 प्रतिशत रह गई है।
ऐसे में संजय राउत का बयान दर्शाते हैं कि, वे भारत समर्थक शेख हसीना के हटने की ख़ुशी मना रहे हैं और भारत विरोधी खालिदा जिया का स्वागत कर रहे हैं।
अशोक बालियान, पीजेंट वेलफेयर एसोसिएशन
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