मुजफ्फरनगर। उत्तर प्रदेश में पिछले काफी लंबे समय से मंत्रिमंडल विस्तार की प्रतीक्षा खत्म हुई और प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लोकसभा चुनाव से ठीक पहले भाजपा एवं सहयोगी दलों के चार विधायकों को उत्तर प्रदेश के राज्यपाल श्रीमती आनंदी बेन पटेल ने कैबिनेट मंत्री की शपथ दिला दी है। इस शपथ ग्रहण समारोह में बाकी सब तो ठीक रहा परंतु बीजेपी के सहयोगी दल आरएलडी के दिग्गज विधायकों के मुकाबले दलित कार्ड ने कई विधायकों के सपनों पर पानी फेरने का काम किया। उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय लोकदल के दिग्गज माने जाने वाले विधायक विधायक दल के नेता राजपाल बालियांन, विधायक प्रश्नन चौधरी, विधायक मदन भैया एवं अजय कुमार अपने आप को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं।
भारतीय जनता पार्टी के साथ राष्ट्रीय लोकदल के गठबंधन में आने से पूर्व कुछ ना कुछ तो अहम शर्तें भी अवश्य रखी गई होगी। जिनके चलते आरएलडी के एक विधायक को कैबिनेट मंत्री बनाया जाएगा। पूर्व में तो दो मंत्री बनाए जाने की पूरी संभावना जताई जा रही थी। पुरकाजी सुरक्षित सीट से विधायक अनिल कुमार को कैबिनेट मंत्री बनाने के पीछे राष्ट्रीय लोकदल के राष्ट्रीय अध्यक्ष जयंत चौधरी का दलित कार्ड है। जयंत चौधरी को लगता है कि एक जाट एक गुर्जर को लोकसभा टिकट देकर एडजेस्ट करते हुए मंत्रिमंडल विस्तार में दलित कार्ड खेला है। राजनीतिक विशेषज्ञों को जरा सी भी नहीं उम्मीद नहीं है कि यह दलित कार्ड कोई करिश्मा करके दिखाएगा।
दिग्गज रूठ गए तो कहीं के नहीं रहेंगे जयंत
राजनीतिक विशेषज्ञों का मत है कि उत्तर प्रदेश के मंत्रिमंडल विस्तार में मंत्री बनने की कतार में आरएलडी के दिग्गज माने जाने वाले विधायक मुजफ्फरनगर जिले की बुढ़ाना विधानसभा सीट से विधायक राजपाल बालियांन को कैबिनेट मंत्री मानकर चल रहे थे इसका एक बहुत बड़ा कारण यह भी था कि राजपाल बालियांन विधायक दल के नेता होने के नाते भी मंत्री बनना भी उनका क्लेम बैठता था वहीं दूसरी ओर खतौली उप चुनाव में सरकार को चारों खाने चित्त करने वाले गुर्जर समाज में बड़ा नाम रखने वाले विधायक मदन भैया वास्तविकता में मंत्रिमंडल में मंत्री बनने के स्वाभाविक हकदार थे। इसका भी बहुत बड़ा कारण है कि रालोद का उपचुनाव में मदन भैया के सहारे जीतना लखनऊ और दिल्ली में भी विशेष महत्व रखता है जिसकी चर्चाएं राजनीतिक गलियारों में जोर-जोर से हुई। वही शामली से प्रश्नन चौधरी तथा आरएलडी की परंपरागत सीट छपरौली के विधायक अजय कुमार को भी मंत्री बनने की पूरी पूरी उम्मीद थी। अब राष्ट्रीय लोकदल के यह सभी दिग्गज विधायक दुखी होकर अपने नेता जयंत चौधरी से यदि रूठ जाते हैं तो कयास तो यहां तक भी लगाए जा रहे हैं कि रूठे विधायक पाला बदलकर सीधे-सीधे भाजपा या फिर समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए तो आरएलडी के प्रमुख जयंत चौधरी कहीं के भी नहीं रह पाएंगे। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि अभी एक-दो दिन के भीतर कुछ भी घटनाक्रम घट सकता है।
खतौली उपचुनाव में मिली ऐतिहासिक जीत के बाद से आरएलडी प्रमुख पर थी सभी दलों की निगाहें
1 साल पूर्व खतौली विधानसभा के उपचुनाव में आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी ने चार बार के विधायक रहे गुर्जर समाज के बड़े चेहरे मदन भैया को उपचुनाव लड़ाकर गुर्जर समाज को जहां संदेश देने का काम किया था वहीं रालोद के परंपरागत वोट जाट एवं गुर्जर ने मिलकर भाजपा को हारने का काम किया। इस उप चुनाव में भाजपा ने खतौली सीट जीतने के लिए अपनी प्रतिष्ठा बनाकर पूरी सरकार चुनाव में उतार दी थी उसके बावजूद भी मदन भैया ने अपनी कौशलता का परिचय देते हुए चुनाव में बड़े अंतर से जीत हासिल की। खतौली उपचुनाव को लेकर लखनऊ विधानसभा के भीतर एवं लोकसभा के भीतर भी कई बार खतौली उपचुनाव का जिक्र हुआ। यह अपने आप में प्रतीत करता है कि कितना अहम उपचुनाव था भाजपा के लिए खतौली उपचुनाव, मदन भैया पांचवी बार विधायक बने और भाजपा आरएलडी गठबंधन के उपरांत उम्मीद लगाई जा रही थी कि मदन भैया को ही कैबिनेट मंत्री बनाया जाएगा। परंतु आरएलडी प्रमुख के दलित कार्ड से कहीं ना कहीं खतौली विधायक भी नाराज होंगे।