हिंदू धर्म में किसी भी तरह के अवैध सम्बन्ध या विवाहेतर संबंध रखना पाप है-अशोक बालियान,चेयरमैन,पीजेंट वेलफेयर एसोसिएशन
आज भारतीय समाज में लगभग सभी समुदाय में वैवाहिक सम्बन्ध के मूल्य गिर रह है। रिश्तों में अलगाव बढ़ रहा है। लिव-इन-रिलेशनशिप का चलन बढ़ रहा है। यह समाज के लिए चिंता का विषय है। हम रोजाना न्यूज़ पढ़ते है कि अनेकों युवा प्रेम विवाह की कीमत अपनी जान देकर चुका रहे है। हमारा मानना है कि यदि शादी नहीं चल सकती, तो हत्या जैसा गम्भीर अपराध न करे, बल्कि तलाक ले लें, अन्यथा जीवन बर्बाद हो जाता है।
हिन्दू धर्म में विवाह को सोलह संस्कारों में से एक संस्कार माना गया हैं। हिंदू धर्मशास्त्र भगवद गीता के अनुसार सामाजिक रूप से स्वीकृत विवाह संस्था के बाहर किसी भी प्रकार के अवैध सम्बन्ध रखना पाप है। इससे पारिवारिक मूल्य नष्ट हो जाते है व इससे कुल का विनाश भी हो जाता है।
हिन्दू धर्म में किसी भी तरह के अवैध सम्बन्ध या विवाहेतर संबंध रखना विवाह की पवित्रता और रिश्तों के भीतर अनियंत्रित वासना के नकारात्मक परिणामों पर बल देती है। भगवद गीता पति-पत्नी के रूप में अपने धार्मिक कर्तव्यों का पालन करने पर जोर देती है, जिसमें निष्ठा और समर्पण शामिल है।
इसप्रकार भगवद गीता में धर्म के मार्ग पर चलना और अपने साथियों के लिए वफादार रहना सिखाया गया है।वैवाहिक रिश्ते में भी पति-पत्नी का एक-दूसरे के प्रति वफादार रहना और जीवन के हर उतार-चढ़ाव में साथ देना उनके रिश्ते की मजबूती बढ़ाता है।
अशोक बालियान
हिन्दू धर्म में एक गोत्र में शादी इसलिए नहीं की जाती है क्योकि उनके परिवारों का संबंध एक ही वंश/कुल से है। ऐसी स्थिति में लड़का लड़की भाई बहन माने जाते हैं, इसलिए एक गोत्र के लड़का लड़की का विवाह अनुचित माना जाता है। हिन्दू धर्म में सामाजिक मान्यता के अनुसार सगोत्र विवाह ही नहीं, जहाँ एक ही गाँव में अलग-अलग गौत्र है, वहां भी एक गांव के लड़के-लड़की का आपसी विवाह भी हिंदू परंपरा में वर्जित है।गोत्र एक भारतीय जाति के भीतर एक प्रकार की वंशावली प्रणाली है जो एक ही पूर्वज से वंश के तहत विवाह को प्रतिबंधित करती है।
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