के.पी. मलिक वरिष्ठ पत्रकार
नई दिल्ली। शनिवार को मुजफ्फरनगर में राकेश टिकैत के साथ अभद्रता के विरोध में बुलाई गई पंचायत में रालोद के दो विधायक राजपाल बालियान और मदन भैया के अलावा मुजफ्फरनगर सांसद हरेंद्र मलिक, कैराना से सपा सांसद इकरा हसन, सरधना के सपा विधायक अतुल प्रधान आदि पहुंचे थे। लेकिन चर्चा इस बात को लेकर है कि क्या रालोद के विधायकों को पार्टी में अपना भविष्य सुरक्षित नज़र नहीं रहा है? इसलिए अपने भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए और क्षेत्र की जातीय राजनीति को साधने के लिए पार्टी की सहमति के बिना विधायक किसान यूनियन के मंच पर पहुंचे थे?

चर्चा यह भी है कि रालोद विधायक मुस्लिम मतदाताओं और सत्ता के साथ आने के बावजूद किसानों की अनदेखी करने के चलते अपने आपको असुरक्षित और उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। उनका मानना है कि साल 2027 के विधानसभा चुनाव में भाजपा से गठबन्धन और वफ्फ संशोधन बिल के मामले को लेकर यदि पार्टी का चुनावी प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा है, तो हम अपनी राजनीतिक जमीन खो सकते हैं। वहीं दूसरी ओर पार्टी के दो अन्य विधायक भी चिंतित है कि कहीं उनके टिकट न काट दिए जाएं, पहला सिवालखास से विधायक गुलाम मोहम्मद जहां पर चर्चा है कि इस बार यहां से पार्टी किसी जाट समाज के उम्मीदवार को उतारने का निर्णय कर सकती है। वहीं दूसरी ओर थानाभवन से विधायक अशरफ अली को चिंता सता रही है कि भाजपा के साथ गठबंधन होने पर भाजपा के कद्दावर नेता और पूर्व मंत्री सुरेश राणा को उम्मीदवार बनाने के लिए भाजपा इस सीट पर अपनी दावेदारी जता सकती है।

बहरहाल, रालोद के भाजपा के साथ गठबंधन होने और सत्ता में शामिल होने के बाद रालोद मुखिया का अपने विधायकों, मंत्रियों और कार्यकर्ताओं से एक दूरी सी बनाकर रखना भी कहीं ना कहीं इसके लिए जिम्मेदार माना जा रहा है। सत्ता में आने के बाद भी उनकी कोई खास हैसियत ना होना भी उनको और उनके कार्यकर्ताओं को कहीं ना कहीं सोने पर मजबूर कर रहा है। यही ऊहापोह की स्थिति रालोद विधायकों को पार्टी में असुरक्षित महसूस करा रही है। इसलिए विधायक गठबंधन के भविष्य और अपने राजनीतिक हितों को लेकर चिंतित नज़र आ रहे हैं। इन तमाम कारणों के चलते विधायक दूसरी पार्टियों में जाने या अपनी राजनीतिक रणनीति बदलने पर विचार कर रहे हैं।

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